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________________ ( २६ ) अहमदाबाद में संखवाल गोत्रीय साह नाथा की भार्या श्राविका धन्नादे ने जो शाह कर्मशी की माता थी, महोपाध्याय समयसुन्दरजी के पास इच्छा परिमाण ( १२ व्रत ) ग्रहण किये थे । इस पत्र के पिछली ओर में कवि ने उन १२ व्रतों के ग्रहण का रास बनाया था, जिसकी कुछ ढालें स्वयं लिखित मिली हैं। इससे कवि के रचित १२ व्रत रास का पता चलता है, जिसकी पूरी प्रति अभी अन्वेषणीय है । और भी कई श्रावक-श्राविकाओं ने धापसे इसी तरह व्रत आदि ग्रहण किये होंगे, जिनके उल्लेख कहीं भण्डारों के विकीर्ण पत्रो में पड़े होंगे या ऐसे साधारण पत्र अनुपयोगी समझे जाते हैं; अतः उपेक्षावश नष्ट हो चुके होंगे। विविध विषयों के सैकड़ों फुटकर पत्र कवि के लिखे हुए हमने भण्डारों में देखे हैं और हमारे संग्रह में भी है। उन सबसे इनकी महान् साहित्य - साधना की जो झांकी मिलती है, उससे हम तो अत्यन्त मुग्ध हैं । सुयोगवश कवि ने दीर्घायु पाई और प्रतिभा तो प्रकृति प्रदत्त थी ही । विद्वान् विद्यागुरुओं आदि का भी सुयोग मिला, सैंकड़ों ज्ञानभंडार देखे, विविध प्रान्तों के सैंकड़ों स्थानों में विचर कर विशेष अनुभव प्राप्त किया और सदा अप्रमत्त रहकर पठन-पाठन और साहित्य निर्माण में सारे जीवन को खपा दिया । उस गौरवमयी साहित्य-विभूति की स्मृति से मस्तक उनके चरणों में स्वयं झुक जाता है । उनके शिष्यों में हर्षनन्दन आदि बड़े विद्वान् थे । अभी अभी तक उनकी परम्परा विद्यमान थी । उनकी चरण पादुका गड़ालय (नाल ) में होने का उल्लेख तो म० विनयसागरजी ने किया ही है; पर जैसलमेर में भी दो स्थानों पर आपके चरण प्रतिष्ठित हैं। तीनों पादुका लेख इस प्रकार हैं:१. " संवत् १७०५ वर्ष (र्षे) फागुण सुदि ४ सोमे श्रीसमम सुन्दर महोपाध्याय पादुके कारिते श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं हर्षनंदन ( गणिभिः) ह्रीं नमः ।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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