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( १३४ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि समयसुंदर के प्रभु मइ ओलखे,
सिवनारि सँ बात कीनी हित की ॥१०॥ सुणि राजुल नारि कहइ गिरनार,
जिका बात तइ कही ते तउ खरी । पणि ए नेमिनाथ त्रिलोक कउ नाथ,
ताऊँ कहि ना कहुँ केण परी ।। इण थी अधिकी महिमा वाधस्यइ,
गिरनार तीरथ हुँ होस्य गिरी । समयसंदर कउ प्रभु दीक्षा नइ ज्ञान,
मुगति त्रिरहे परिस्यइ सुंदरी ॥११॥ एजु ईसर सेती राची ऊमया,
पणि ते तउ धतूरउ नइ भागि भखी । अरु क्लष्ट सेती तउ राची कामला,
पणि ते न रहइ महियारी पखी ॥ कहइ राजिमती रलियात थकी,
मुझ भाग वड़उ महिला मइ सखी । समयसुन्दर कउ प्रभु मइ वर पायउ,
ते तउ ब्रह्मचारी आचार रखी ।।१२।। एजु कीकी काली अजुयालउ करइ,
कसतूरी काली पणि महा महकइ । कालउ कृष्ण गोपांगना मन मोहइ...
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