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नेमिनाथ गीत ( १३१) गिरिधर रामराय उग्रसेन हड़,
एसउ नहीं कोई प्रियु हटकइ री । तोर तिहार दोर सब राजुल,
नाह विना कहा कीयइ भटकइ री ॥२॥ए। इन्द्र चन्द्र नागेन्द्र बहुत हइ,
अउर ठौर मेरउ जीउ न टकहरी । समयसुन्दर प्रभु कोउ मिलावउ,
पाय पर नीकइ लटकह री ॥३॥ ए०।
.. नेमिनाथ गीत सखी यादव कोडिसुपरवरे, प्रीयु आए तोरण बारिरे। रथ फेरि सीधारे, पशु की सुणि पुकारि रे।। मन मोहनगारो, कोइ प्राणी मिलावउ नेमि रे। मोहि विरह संतावइ, सखी पूरव भव कउ प्रेम रे । मन। आं०। सखी मइ अपराध न को कियउ, यदुराय रीसणे केम रे। हां हां मरम पिछाण्यउ, सिव नारि धृतारे नेमि रे।२। मन। सखी नयण न देखुनेमजी,मोहि चित पटि लागी चीतरे। पर पीर न जाणइ नहि को, मेरइ एइसउ मीत रे।३। मन सखी अबहु मौन करूंगी, मोहि लागी मोटी सीख रे। गिरनारि चढुंगी, प्रभु पासि लेऊंगी दीख रे।४। मन। सखी राजुल संयम आदयों, मन माहि वस्यो वइराग रे। परमाणंद पायउ, समयसुन्दर कउ सोभाग रे ।। मन।
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