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________________ समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि चारित्र चूनड़ी तीन गुपति ताणो तण्यो रे, वीणो रे वरण्यो गुण वृंद रे । रंग लागो वैराग नो रे, विच में वण्यो चारित चंद | १ | लाखीणी चूनड़ी रे लाल, मोलवि सखि केताउ मूल । चूनड़ी चितमानी अमूल, मूनें नेम उढाड़ी रे विहड़ रंग ए चुनड़ी रे, भल भल विच में समयसुन्दर कहर सेवतां रे, खरी पूगी राजुल खांति |२| । ० । रांति । ( १३० ) | गूढा गीत लाल को लयुं री सखि समझाइ | ला●| नि भखी प्रियजनक तणो सुत, आणि मिलावो भाइ । ला०|१| ईस भूषण क्ष क्ष सुत सामि रिपु, बंधु प्रीया महरा साइ | ला ० | भोजन इन्द्र सहोदर सुत रिपु, कंठाभरण सुहाई । ला०|२| अभिमानी पंखी भाषा विणु, खिरा इक में न रहाड़ | ला०| राजुल नेमि मिले उज्वल गिरि, समयसुन्दर सुखदाई | ला ० | ३ | नेमिनाथ गीतम् राग - मारुणी ( धन्याश्री जयश्री मिश्र ) एतनी बात मेरे जीउ खटक री । विण अपराध छोरि गये जादु, Jain Educationa International तोरी श्रीति तातय त्रटक री ॥ १॥ ९० ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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