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________________ ( १२६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि राजुल नारि कहइ मृगनयणी, मृग कउ काउ म मानउरे। नयण विरोध हमारइ इण सु, जादव ए मर्म जाणउ रे।।रा। आगे पिण सीता नइ इण मृग, राम विछोहउ पाइयउ रे। रोहिणी कउ मनरंग गमाइयउ,चंद कलंक दिखाड्यउरे।३ रा०। दोषी हुयह ते देखि न सखइ, घात विचालह घालइ रे। समयसुन्दर प्रभु साजन सरिखा, पडिवन्तउ पालइ रे।४। रा०। नेमिनाथ गीत राग-मारुणी उग्रसेन की अंगजो, बोलति गदा गज वाणि । किण सुताणि न तोडियइ, जगजीवन चतुर सुजाणि ।। ह०। हमारे मोहन विन अपराधि न छाड़ि ॥ अांकणी ॥ अष्ट भवन की प्रीतडी, नवौताणा ताणि । जल बिन मछली किउं रहइ, कछु महरि हमारी आणि ।२। ह। नेमिनाथ नाकी करी, तारी आप समानि । समयसुन्दर कहइ आपणि, प्रीत चाढी नेमि प्रमाणि ।३। ह०। नेमिनाथ गीतम् राग-मारुणी चंदई कीधउ चानणउ रे, दोठउ मृग दुःख दाय । तुदधि सुत तिण दाखवु, भलउ समुद्रविजय सुत भाइ।१। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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