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नेमिनाथ भास
(१२१ )
कातियइ कामिनी टोल, रमइ रोसड़इ रंग रोलि । हुँ घरि बइसी रहि एथि, मन माहरउ पिउ जेथि ॥४॥ मगसरह वाजइ वाय, विरहणी केम खमाय । मंड किया के अंतराय, ते केवली कहिवाय ॥शा पापियउ आव्यउ पोष, स्यउ जीविवा नउ सोस। दिन घट्या बाधी राति, ते गमु केण संघाति ।।६।। मोह मास विरही मार, शीत पड़इ सबल ठठार । भोगी रहइ तन मेलि, मुझ नइ पियु मन मेल ॥७॥ फूटरा फागुण बाग, नर नारी खेलइ फाग । नेमि मिलइ नहीं जो सीम, तां सीम रमिवा नीम ॥८॥ चैत्र आम मां चंग, कोयली मिली मन रंग। बाई माहरउ भरतार, की मेलस्यइ करतार ॥६॥ वैशाख वारु मास, नहीं ताढि तड़कउ तास । उंची चढि आघास, वइसयइ केहनइ पास ॥१०॥ जेठ मासि लू नउ जोर, मेहनइ चितारइ मोर। . हूं पिण चितारु नेम, पगि नेमि नाणई प्रेम ॥११॥
आषाढ उमट्या मेह, गया पंथि आपणि गेह । हुँ पणि जोउं प्रियु वाट, खांति वछाउं खाट ॥१२॥ बार मास विरह विलाप, कीधा ते पोतइ पाप।। मन वालिङ वैराग, साचउ कर सोभाग ॥१३॥
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