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________________ नेमिनाथ फाग ( ११६ ) सुख दुख सयं लहियइ ।३। बा० । इणरे धूतारी बाई अनंत धूतार्या, बीजा सु बोलता निवार्या ।३। बा० । मुझ पिउड़उ बाई नहीं म्हारइ हाथि, हुँ नहीं जाउं पिउ साथि ।४। बा। राजुल पिउथी पहिली गइ मुगति, समयसुन्दर कहइ जुगति ।। बा० । नेमिनाथ फाग आहे सुन्दर रूप सुहामणउ, शिवादेवो मात मल्हार । सु०॥ आहे नव योक्न भर आवियउ,लाडिलउ नेमकुमार।शनवयो। आहे निरमल नीर खंडोखलि, खेलण नेमि सराग। निः । आहे हाव भाव विभ्रम करइ, गोपी गावइ फाग ।।हाव। आहे लाल गुलाल चिहुं दिसइ, उडत अवल अबीर। ला०। . आहे केसर भरि भरि पिचरका, छांटत सामि शरीर।३। के। आहे एक बजावइ बांसली, एक करइ गोपी नृत्त । ए०। आहे एक देउर हासा करइ, एक हरइ प्रभु चित्त ।४। ए.। आहे एक अंचल प्रभु गहि रही, एक कहइ परणउ नारि। ए० । आहे जउ निरवाह न होइ तउ, करिस्यइ कंत मुरारिश ज०। आहे नेम हंस्या गोपि भणइ, देवर मान्यउ विवाह । ने। आहेरमलि करि घर आविया,शिवा देवि मात उछाह।६। र । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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