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समय सुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
( ३१ )
श्री युगमंधर करुणा सागर, विहरमाण जिणंद जी । सेवक नी प्रभु सार करीजर, दीजइ परमाणंद जी |२| श्री यु० । जनम जरादिक दुख थी बोहतउ, हुं व्यउ तुम्ह पासि जी । मुझ ऊपरि प्रभु मया करी नइ, दीजइ निरभय वास जो । ३ श्री यु० । वीनतड़ी प्रभु सफल करेज्यो, श्री युगमंधरदेव जी । समयसुन्दर कर जोड़ी वीनवइ, भवि भवि तुम पय सेव जी । ४ श्री ०
३. बाहु जिन गीतम
राग - आसाउरी
।
बाहु नाम तोथंकर घउ मुझ, दुरगति पडतां बांह रे । हुं तपत व्यउ तुम्ह पासे, तुम्हे करउ टाढी छांह रे | १| बा० | पच्छिम महाविदेह रहउ तुम्हे, हूँ तउ भरत खेत्र मांहि रे विद्या पांख बिना किम वांदू, पण माहरू मन त्यांह रे | २ | वा० | चउरासी लख मांहि भम्यउ हूँ, पणि सुख न लह्यउ क्यांह रे । समयसुन्दर कहइ सुखि अउ राखज्यो, सासता सुख छइ ज्यांह रे ।
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४. सुबाहु जिन गीतम्
राग आसावरी
सामि सुबाहु तूं अरिहंत देवा, चउसठि इंद्र करइ तुझ सेवा । सुरनर व धरम सुरोवा, मीठी वाण अमृत रस मेवा । १ सा० । पूछई प्रसन संदेह हरेवा, अपणउ समकित सुद्ध करेवा । २ सा०| तुझ समरू भव समुद्र तरेवा, समयसुन्दर कहइ गज जिम रेवा | ३ |
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