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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
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बे बब्बीह भाई, आयउ री वसंत मास, सब जन पूगी प्रास, . रमत खेल रास, उडत अबीर जू । ऊछले गुलाल लाल, लपटाणौ दोउ गाल,
वाहइ पिचरके विचाल, भीजे चोली चीर जू। अति भलौ श्राम बाग, छैल छबीला लाग,
सुन्दर गीत सराग, सुन्दर सरीर जु ॥ समयसुन्दर गावै, परम पाणंद पावै, . वसंत की तान भाव, गुहिर गंभीर जु ॥२३॥ पंच दिन करि ऊण, छमासी पारणा दिन,
झटकि पड़या बंधन पग का जंजीर जू । दुन्दुभि बाजी आकास, प्रगट्यौ पुण्य प्रकास,
चन्दना की पूगी आस, पाम्यौ भवतीर जू॥ साध तौ चवदे हजार, साधवी छत्तीस सार,
वीरजी को परिवार, गौतम वजीर जु । समयसुन्दर वर, ध्यान धर निरंतर,
चौवीसमौ तीर्थकर, वांदयौ महावीर जु ॥२४॥ आदिनाथ दे आदि स्तव्या, चौवीस तीर्थंकर ।
पवित्र जीभ पण कोध, शुद्ध थयौ समकित सुन्दर ॥ सणौ भणौ सहु कोइ, श्रवण रसना करौ सफला।
इहु लोक नै पर लोक, सफल करौ पणि सगला ॥ चौवीस सवैया चतुर नर, कहजो कर मुख नी कला।
समयसुन्दर कहइ सांभलो, ए मीठा मिश्री नाडला।२॥
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