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________________ ( २४ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ४६८. निरंजन ध्यान गीतम् गा. २ हां हमारइ पर ब्रह्म ज्ञानं ४४६ ४६६. परब्रह्म गीतम् , ३ हुँ हमारे पर ब्रह्म ज्ञानं ४४६ ४७२. जीषदया गीतम् , ३ हां हो जीवदया धरम वेलड़ी ४४७ ४७१.वीतरागसत्यषचन गी ,, ३ हां हो जिनधर्म जिनध्रम सहु कहइ ४४७ ४७२. कर्म निर्जरा गीतम् ,, ५ कर्म तणी कही निर्जरा ४४७ ४७३. वैराग्य सज्झाय , ५ मोक्ष नगर मारु सासरूँ ४४८ ४७४ क्रोध निवारण गी. , ३ जियुरातू म करि किण रोस ४४६ ४७५. हुंकार परिहार गी , २ जहां तहां ठउर ठ र हूँ हूँ हूँ ४४६ ४७६. मान निवारण गी. ,, ३ मूरख नर काहे कुकरतगुमान४४६ ४७७ , गी. , ३ किसी के सब दिन सरिखे न . होइ ४५० ४७८. यति लोभ निवा. गी. , २ चेला चेला पदं पदं ४५० ४७६. विषय निवारण , , ३ रे जीव विषय थी मन वालि ४५१ ४८०. निन्दा परिहार , ,. ४ निन्दा न कीजई जीव पराई ४५१ ४८१. निन्दा वारक ,, ,, ५ निन्दा म करजो कोई नी. पारकीरे४५१ ४८२. दान गीतम , ४ जिनवर जे मुगतइ गामी ४५२ ४८३.शील गीतम , ३ सीलव्रत पालउ परम सोहा मणउ रे ४५३ ४८४. तप गीतम् ,, ३ तप तप्या काया हुई निरमल ४५३ ४८५. भावना गीतम् , ३ भावना भावज्यो रे भवियां ४५४ ४८६. दान-शील-तप-भाव गूढा ग्रहपति पुत्र ऋतूत करउ ४५४ गीतम् गा. ३ ४८७. तुर्य वीसामा , २ भार वाहक नइ कहा ४५५ ४८८ प्रीति दोहा , ४ कागद थोड़ो हेत घणउ ४५५ ४८६. अंतरंग शृङ्गार गीतम् ,, १३ हे बहिनी महारउ जोयउ सिणगार ४५६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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