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________________ ४४६ अंतरङ्ग बाह्य निद्रा निवारण ४५०. निद्रा गीतम् ४५१. पठन प्रेरणा गीतम् ४३.२ क्रिया प्रेरणा ४५३. जीव व्यापारी ४५४. घड़ियाली गीतम् गा. ४ नीद्रड़ी निवारो रहो जागता ४३५ ३ सोइ सोइ सारी रयरिण गुमाइ ४३६ ५ भगउरे चेला भाई भराउ रे. ४३६ ८ क्रिया करउ चेला क्रिया करउ ४३७ " "" ") Jain Educationa International अनुक्रमणिका ४५७ कर्म गीतम् ४५८. नावी गीतम् ४५६. जीव काया गीतम् ४६०. काया जीव गीतम् ४६१. जीव कर्म संबंध गी. در رد " ار "" ४५५. उद्यम भाग्य "" " ४५६ सर्वभेष मुक्तिगमनगी गा. ३ हां माई हर कोड भेख मुगति पावै ४३६ गा. ३ हां माई करमथो को छूटई नहीं ४४० २ नावा नीकीरी चलइ नीरमभार ४४० ६ जीव प्रति काया कहइ ४४१ ४ रूड़ा पंखीड़ा, मुन्छे मेल्ही म "9 " 39 ( २३ ) " ३ आये तीन जणे व्यापारी ४३८ ३ चतुर सुगउ चित लाइ के ४३८ ३ उद्यम भाग्य बिना न फलइ ४३६ " जाय ४४१ २ जीव नइ करम मांहों मांहि ४६२ सन्देह गीतम् ४६३. जग सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर पृच्छा गीतम् गा. ३ " ४६४. करतार गीतम् ४३५. दुषमा काले संयम पालन गीतम् गा. २ पलइ ४४४ ४६६. परमेश्वर भेद गीतम्, १७ एक तू ही तूं ही, नाम जुदा मुहि० ४४४ ४६७. परमेश्वर स्वरूप दुर्लभ गी. कुण परमेसर सरूप कहइ री ४४५ गा. ३ संबन्ध ४४२ ३ करम अचेतन किम हुयउ करता ४४२ पूछू पंडित कहउ का हकीकत ४४३ For Personal and Private Use Only ५ कबहु मिलइ मुझ जो करतारा ४४३ हां हो कहो संयम पथ किम www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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