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महोपाध्याय समयसुन्दर
गयूँ दुःखनासी, पुनः सौम्यदृष्ट्या, थयुं सुक्ख झा, यथा मेघवृष्ट्या |१| जिके पार्श्व केरी, करिष्यन्ति भक्ति, तिके धन्य वारु, मनुष्या प्रशक्तिम् । भली आज वेला, मया वीतरागाः, खुशी मांहि भेट्या, नमद्ददेवनागाः | २| तुमे विश्वमांहे,
महाकल्पवृक्षा,
तुमे भव्य लोकां, मनोऽभीष्टदक्षा | तुमे माय बाप, प्रियाः स्वामिरूपाः, तुमे देव मोटा, स्वयंभू स्वरूपाः | ३| आदि. [ पार्श्वनाथाष्टक, कु० पृ० १६६
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कवि जन्मतः राजस्थानी होता हुआ भी 'सिन्धी' भाषा पर अच्छा अधिकार रखता है । देखिये कवि को पटुताः
"मरुदेवी माता वै खर, इद्धर उद्धर कितनुं भाखड़ आउ आषाढ कोल ऋषभजी, आउ साढइ कोल | १|
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मिट्ठा वे मेवा तैकु देवां, उ इकट्ठ े जेमण जेमां । लावां खूब चमेल ऋषभजी, आउ असाढ कोल |२|
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वो मेरे बेटा दूध पिलावां, बही बेड़ा गोदी में सुख पावां । मन असाड़ा बोल ऋषभजी, आउ असादा कोल |७|
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