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________________ पालि-प्राकृत कथाओं के अभिप्राय/89 की अझात और अप्राप्त के प्रति तीव्र जिज्ञासा ने ही अनेक अभिप्रायों का निर्माण किया है, जिनका समबन्ध धर्म, दर्शन और नैतिकता से भी जुड़ा हुआ है। इस प्रकार अभिप्राय-अध्ययन द्वारा न केवल कथाओं के हार्द तक पहुँचा जा सकता है, अपितु मानवीय-मूल वृत्तियों की विकसित-परम्परा का भी ज्ञान होता है। अभिप्राय-अध्ययन के प्रयत्न विदेशी विद्वानों द्वारा पर्याप्त मात्रा में किये गये हैं। ब्लूमफील्ड और उनके सहयोगियों के अतिरिक्त बेनिफी, हानी, जैकोबी, बेबर, थामसन और पेंजर आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन्हीं को आधार मान कर कुछ भारतीय विद्वानों ने भी इस दिशा में प्रयत्न किये हैं। किन्तु प्रश्न यह है-क्या इन सब प्रयत्नों को अभिप्राय-अध्ययन का नाम दिया जा सकता है ? केवल कथानक-संगठना का वर्गीकरण अभिप्राय-अध्ययन नहीं है। कैदी राजा ओर उसकी पुत्री, पेटुपने की चिकित्सा, भूख हड़ताल, बदला हुआ पत्र, निर्दोष भिक्षु को पति ने पीटा आदि घटनाओं को अभिप्राव मानकर उनका अध्ययन करना हमें किस शाश्वत तथ्य का परिचय देता है समझ में नहीं आता ? अतः पाश्चात्य विद्वानों के अब तक किये गये कार्य का अपनी दृष्टि से परीक्षण करना नितान्त आवश्यक है। अभिप्राय की परिभाषा संबंधी भ्रान्तियां : अभिप्राय (motif) शब्द का प्रयोग पाश्चात्य विद्वानों ने अनेक अर्थों में किया है। भारत की कथाओं पर प्रथम कार्य टेम्पल महोदय ने कथा में प्रयुक्त घटना या घटनाओं को अभिप्राय कहा है। बाद के अन्य विद्वानों-स्विरनरटन, पेंजर, वेरियर एलविन आदि ने भी इसी का अनुकरण किया और अभिप्रायों के अन्तर्गत घटनाओं का अध्ययन करते रहे। इनके विचार से चोरी से ले जाना, कुतिया और मिर्च, ईष्यालू रानी, पशु से विवाह, चुहिया कुमारी आदि विभिन्न कथाओं की विशेष घटनाएं अभिप्राय हैं। किन्हीं विद्वानों ने कथा के फल को अभिप्राय कहा है यथा- घमण्ड का फल, लोभ का फल, चोरी का फल, कर्म फल आदि। किन्तु घटना और परिणाम को अभिप्राय मानना कहाँ तक युक्ति-संगत है ? कथा के उत्स को खोजने में घटना सहायक नहीं है। परिस्थिति अनुसार एक कथा में अनेक घटनाएं हो सकती है, किन्तु परम्परा में सभी का स्थिर रहना जरूरी नहीं है और न ही सभी कथा के अन्तरंग की संवाहक होती है। अतः घटना विशेष को अभिप्राय मानना ठीक नहीं। परिणाम इसलिए अभिप्राय नहीं कहा जा सकता क्योंकि एक ही कथा के विभिन्न उपयोग हो सकते हैं और उतने ही उन के परिणाम । झूठ बोलने का फल किसी एक कथा में फांसी की सजा हो सकती है तो दूसरी कथा में किसी नरक विशेष की प्राप्ति। अतः यहाँ परिणाम को अभिप्राय न कह कर असवृत्ति के प्रदर्शन का अभिप्राय कहा जा सकता है, जो अपने आप में काफी विस्तार लिए हुए है। सिपले महोदय ने अभिप्राय को परिभाषित करते हुए कहा है- "Motif-A word or a pattern of thought which recurs in a similar situation or to evoke a similar mood within a work or in various works of a genre." 'अभिप्राय उस शब्द अथवा एक सांचे में ढले हुए उस विचार को कहते हैं जो समान परिस्थितियों में अथवा समान मन-स्थिति और प्रभाव उत्पन्न करने के लिए किसी एक कृति अथवा एक ही जाति की विभिन्न कृतियों में बार-बार आता है। अभिप्राय की इस सामान्य परिभाषा से प्रभावित होकर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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