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________________ नवम कथा णेमिणाहचरिउ की जैन साहित्य में नेमिनाथ तीर्थंकर के जीवन और साधना को विषय बनाकर कई कवियों ने चरित ग्रन्ध लिखे हैं। सर्वप्रथम आगम एवं पुराण ग्रन्थों में नेमिनाथ के चरित का वर्णन प्राप्त होता है। आठवीं शताब्दि में अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू ने इस कथानक को लेकर 'रिट्ठणेमिचरिउ के नाम से स्वतन्त्र रचना प्रस्तुत की। लगभग 12 वीं शताब्दि में नेमिनाथ के जीवन पर प्राक्त, अपभ्रंश एवं संस्कृत के कवियों ने विभिन्न रचनाएं लिखी हैं। बारहवीं शताब्दि के अपभ्रंश कवि लक्ष्मणदेव (लखमदेव) द्वारा रचित णेमिणाहचरिउ एक महत्त्वपूर्ण कृति है, जो अभी तक अप्रकाशित है। णेमिणाहचरिउ (लखमदेव) की इस रचना की एक पाण्डुलिपि हमने ऐलक पन्नालाल जैन सरस्वती भवन, उज्जैन से प्राप्त की है। अपभ्रंश के विद्वानों के लिए यह प्रति अज्ञात थी। किसी ने इसका विवरण या सूचना आदि अपने ग्रन्थों में नहीं दी है। उज्जैन की यह प्रति वि.सं 1510 में लिखी गयी किसी मूल प्रति की प्रतिलिपि है। इस प्रति में कुल 29 पत्र है। पं. परमानन्द शास्त्री ने अपनी प्रस्तावना में यह तो संकेत किया है कि णेमिणाहचरिउ की सबसे पुरानी प्रति वि. सं. 1510 की लिखी हुई प्राप्त हुई है। किन्तु यह मूल प्रति कहाँ है, अथवा किसे प्राप्त हुई है, इसका कोई उल्लेख उन्होंने नहीं किया है। ग्रन्थ का परिचय उन्होंने पंचायती दि. जैन मन्दिर, दिल्ली के भण्डार में उपलब्ध प्रति के आधार पर दिया है। अपभ्रंश के खोजी विद्वान् डॉ देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने भी अपनी सूची में इस वि.सं. 1510 की प्रति का कोई विवरण नहीं दिया है। हमें उज्जैन में इस प्रति की प्रतिलिपि तो उपलब्ध हो गयी, किन्तु मूलप्रति अभी भी अन्वेषणीय है। इसे, इस ग्रन्थ की प्रथम प्रति माना जा सकता है। इस ग्रन्थ की दूसरी प्रति पंचायती दि.जैन मन्दिर दिल्ली में उपलब्ध है, जो. वि. सं. 1522 की लिखी हुई है। अगहन सुदी 10, भौमवार को यह प्रति लिखी गयी थी। इस प्रति में कुल 52 पत्र हैं। 45 वां पत्र उपलब्ध नहीं है। पत्र की साइज 101/4x 4/1/2 इंच है। इस प्रति के अंतिम भाग में ग्रन्थकार की प्रशस्ति दी हुई हैं। उससे ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थ आषाढ़ की तेरस को आरम्भ किया गया था एवं चैत की तेरस को इसकी रचना पूर्ण हो गयी थी __ आरंभिउ आसाढहिं तेरसि, भउ परिपुण्ण चइतिय तेरसि। - संधि 4, घत्ता 2 किन्तु इस प्रति में रचनाकाल नहीं दिया हुआ है। इस मिणाहचरिउ की तीन पाण्डुलिपियां सरस्वती भवन नागौर के ग्रन्थ-भण्डार में उपलब्ध हैं। इनमें से दो प्रतियों का परिचय डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने दिया है, जिन्हें यहां इस ग्रन्थ की क्रमशः तृतीय एवं चतुर्थ प्रति कहा जा सकता है। ग्रन्थ की यह तृतीय प्रति वि.सं. 1529 में श्रावण कृष्णा 11 को लिखी गयी है। इसमें 58 पन्ने हैं, जिनकी साइज 101/2X4 3/4 इंच है। डॉ. पी.सी. जैन ने इस प्रति का लेखनकाल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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