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________________ कथा के मानक रूप एवं अभिप्राय : आरामशोभा कथा एक लोककथा है। अतः इसमें लोकतत्वों की भरमार है। इस कथा के मानकरूप इस प्रकार हैं: आरामसोहाकहा (पद्य) - परिचय / 75 1. अकेली बालिका पर घर के कार्यों का भार । 2. सर्प का मनुष्य की वाणी में बोलना । 3. कृतज्ञ नागकुमार द्वारा साहस के कार्य के लिये वरदान देना । 4. छत्र के रूप में कुंज का आश्चर्य । 5. राजा द्वारा गुणी, गरीब कन्या से विवाह | 6. सौतेली माता द्वारा सौतेली पुत्री की मारने का प्रयत्न । 7. नागकुमार द्वारा अदृश्य रूप से सहायता । 8 कुए में ढकेलना, किन्तु वहाँ पर भी रक्षा। 9. पुत्र जन्म पर मां को परिवर्तन कर देना । 10. असली पत्नी को राजा के द्वारा बाद में पहिचान लेना । 11. पुत्र - दर्शन के लिये देवता की समय-मर्यादा की शर्त । 12. शर्त तोड़ने वर देवता के वरदान का लुप्त होना । 13. नायिका द्वारा सौतेली मां एवं बहिन को क्षमा प्रदान करना । 14. मुनि से पूर्व जन्म का वृतान्त - श्रवण । 15. पति द्वारा जंगल में छोड़कर चले जाना। 16. धर्मपिता सेठ द्वारा आश्रय देना । 17. अपने अतिशय गुणों से धर्मपिता को संकट से बचाना । 18. जिनमंदिर- निर्माण और जिनपूजा के फलस्वरूप सद्गति । 19. कर्मफल श्रृंखला | 20. वर्तमान जीवन की घटनाओं का तालमेल पूर्वजन्म की घटनाओं से बैठाना | इन मानकरूपों को देखने से पता चलता है कि 1-13 तक के मानकरूप एक लौकिक कथा के हैं। उनका जैनधर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। और 14-20 तक के मानकरूप किसी भी धर्म के साथ जोड़े जा सकते हैं। वस्तुतः आरामशोभाकथा में दो कथाओं को एक साथ मिला दिया गया है। परवर्ती कथाओं पर प्रभाव : आरामशोभाकथा का मूल अभिप्राय 'माता- विहीन पुत्री और सौतेली माता का स्वार्थ है। इस अभिप्राय को पुरी तरह व्यक्त करने के लिये कई कथाकारों ने लेखनी चलाई है। सन् 1150 में अपभ्रंश कवि उदयचन्द्र ने 'सुगन्धदशमीकथा' लिखी है। इस कथा का उत्तरभाग आरामशोभाकथा से मिलता-जुलता है। डा. हीरालाल जैन ने इसकी कुछ समान विशेषताओं की ओर संकेत किया है। सौतेली लड़की की अवहेलना एवं अपनी सगी पुत्री को उसका पद दिलाने की चाह दोनों में समान है, यद्यपि तरीकों में अन्तर है। सौतेली माता द्वारा सौतेली पुत्री की अवमानना करने की घटना सुगंधदशमी कथा के संस्कृत ( सन् 1472 ), गुजराती ( 1450 ), Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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