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________________ 58 / प्राकृत कथा - साहित्य परिशीलन माता-पिता का विघातक होगा। ऐसी प्रतीक कथाओं का विकास आगमिक कथाओं से हुआ हैं। आचारांगसूत्र में एक कच्छप की प्रतीक कथा है। उस कछुए को शैवाल काई के बीच में रहने वाले एक छिद्र से आकाश में चांदनी का सौन्दर्य दिखायी देता है। उस मनोहर दृश्य को दिखाने के लिए जब वह कछुआ अपने साथियों को बुलाकर लाया तो उसे वह छिद्र ही नहीं मिला, जिसमें से चांदनी दिख रही थी। यह प्रतीक आत्मज्ञान के निजी अनुभव के लिए प्रयुक्त हुआ है।' भारतीय कथाओं में कच्छप- प्रतीक प्रचलित रहा है। इसी प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र में पुण्डरीक की प्रतीक कथा है। एक सरोवर जल और कीचड़ से भरा हुआ है। उसके बीच में कई कमल खिले हुए हैं। उनके बीच में एक सफेद कमल है। चारों दिशाओं से आने वाले मोहित पुरुष उस सफेद कमल को प्राप्त करने के लिए प्रयास में कीचड़ में फंसकर रह जाते हैं । किन्तु बीतरागी पुरुष सरोवर के किनारे खड़ा रहकर भी सफेद कमल को अपने पास बुला लेता है। 7 इस प्रतीक कथा में सरोवर संसार का प्रतीक है, जल कर्मराशि का । कीचड़ विषय-भोगों का प्रतीक है। साधारण कमल जनपद के प्रतीक हैं एवं श्वेत कमल राजा का। चार मोहित पुरुष मतवादियों के प्रतीक हैं। एवं वीतरागी पुरुष श्रमणधर्म का ज्ञाताधर्मकथा में कई प्रतीक कथाएं प्राप्त है। मयूरी के अण्डों के प्रतीकों द्वारा श्रद्धा और संशय के फल को प्रकट किया गया हैं। दो कछुओं की प्रतीक कथा द्वारा संयमी एवं असंयमी साधकों के परिणामों को उपस्थित किया गया है । धन्ना सार्थवाह एवं विजय चोर की कथा आत्मा एवं शरीर के सम्बन्ध को स्पष्ट करती है। रोहिणी कथा पांच व्रतों की रक्षा एवं वृद्धि को प्रतीक द्वारा स्पष्ट करती है। उदक जात नामक कथा अनेकान्त के सिद्धांत को प्रतीकों से समझाती है। उतराध्ययनसूत्र एवं उसके व्याख्या साहित्य में कई प्रतीक कथाएं उपलब्ध हैं। प्रतीक कथाओं की इस पृष्ठभूमि में आचार्य हरिभद्र की प्रतीक कथाएं विकसित हुई हैं । आचार्य हरिभद्रसूरि की रचनाओं में समराइच्चकहा का प्रमुख स्थान है। इस कथा - ग्रन्थ में कई प्रतीक कथाएं अन्तर्निहित हैं । ग्रन्थ के दूसरे भव की कथा सिंहकुमार, कुसुमावली और आनन्द के जीवन से संबंधित है । प्रसंगवश संसार-स्वरूप का विवेचन करने के लिए इसमें मधु - बिन्दु दृष्टान्त की कथा प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत की गई है। यह हरिभद्र की प्रतिनिधि प्रतीक कथा है। यद्यपि इस कथा का प्रचार भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से रहा है। 10 मधु - बिन्दु की संक्षिप्त प्रतीक कथा इस प्रकार है: - "अनेक देशों एवं बन्दरगाहों में विचारण करने वाला कोई एक पुरुष अपने सार्थ के साथ एक सघन जंगल में प्रविष्ट हुआ । किन्तु चोरों द्वारा लूट लिये जाने पर वह अकेला जंगल में भटकने लगा। तभी एक जंगली हाथी उसके पीछे पड़ गया। उससे बचने के लिए वह पुरुष दौड़ कर एक पुराने कुएँ में वटवृक्ष के प्रारोह जटाओं को पकड़कर लटक गया। कुंए के बीच में लटके हुए उस व्यक्ति ने देखा कि नीचे मुंह फाड़े हुए एक अजगर उसको लीलने के लिए तैयार है। कुएँ की दीवालों पर चारों और सर्प घूम रहे हैं। जिस जटा को वह पकड़े हुए है उसके ऊपर बैठे हुए काले एवं सफेद दो चूहे उस जड़ को काट रहे हैं। वह जंगली हाथी भी अपनी सूंड से उस वटवृक्ष को उखाड़ने के प्रयत्न में उसे हिला रहा है। इससे वटवृक्ष पर स्थित मधुमक्खियों का - एक झुण्ड उड़कर उस व्यक्ति के शरीर को काटने लग गया है। किन्तु मधु मक्खियों के छत्ते से मधु की एक-दो बूंद उस व्यक्ति के मुख में पड़ जाती हैं, जिनको चाटंकर वह रसास्वादन करने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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