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________________ 52/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन मात्र से अपनी अंगुली को चबा डाला। अतः अभी तुम्हारे भाव शुद्ध नहीं है। केवल द्रव्य संलेखला से क्या लाभ ? सुनो, मैं मुम्हें एक दृष्टान्त सुनाता हूँ। किसी राजा की आंखे प्रतिक्षण झपकती रहती थीं। उसके वैद्य भी उसे ठीक नहीं कर पाये। तब बाहर से आये एक वैद्य ने कहा- "मैं आपकी आंखे ठीक कर दूंगा। किन्तु यदि आप मेरी दवाई से उत्पन्न क्षण भर की पीड़ा को सहन कर सकते हों तो।" तब राजा ने स्वीकृति दे दी। बैद्य ने जब राजा की आंख में अंजन लगाया तो राजा को तीव्र वेदना हंई। उसने तुरन्त आदेश दिया कि मुझे ऐसी पीड़ा देने वाले उस वैद्य को तुरन्त मार डाला जाय। किन्तु वैद्य को मारने का जब तक प्रबन्ध किया गया उसके पूर्व ही राजा की अंखें ठीक हो गयीं। वेदना जाती रही। तब प्रसन्न राजा ने वैद्य को पुरस्कृत किया। शिष्य को आचार्य का उपदेश वैद्य की दवाई की तरह कठोर भी लगे तो भी मानना चाहिए। यदि कोई शिष्य बहुत समझाने पर भी नहीं माने तो आचार्य को चाहिए कि उसे गण से निकाल बाहर करे, जैसे कि पान की लता की रक्षा के लिए सड़े पान को बाहर फेंक देना पड़ता है।3 50. अवंतिसुकुमाल (परीषह सहन):- उज्जैनी की सेठानी भद्रा का पुत्र अवन्ति सुकुमाल के नाम से प्रसिद्ध था। उसके 32 पलियां थीं। किन्तु एक मुनिराज के उपदेश से वह साधु बन गया। उसके पूर्व-जन्म की भाभी के जीव सियाली ने तप में रत खड़े हुए सूकुमाल मुनि के पैरों को खा डाला, किन्तु वे तप से विचलित नहीं हुए। अतः साधु को शरीर के प्रति ममत्व न रखकर सभी परिषह सहना चाहिए। यह कया जैन साहित्य में बहुप्रचलित है। - 51. निर्लोभी ब्रह्मदत्त :- मुनि को चाहिए कि वह कामभोगों में न लुभाये। राजा आदि के द्वारा राज्य, स्त्री, धन, चक्रवर्तीपद आदि का प्रलोभन देने पर भी उनकी आकांक्षा न करे। सुद्धि-दर्शन मोहित ब्रह्मदत्त की तरह कोई निदान न करे। ____52. शुधिवादी की कथा :- आचारांगचूर्णि में एक शुचिवादी की कथा है। वह शुचिवादी किसी एक घर से भिक्षा मांगकर खाता था और चौसठ वार मिट्टी से स्नान करता था। किन्तु जब एक मरे हुए बैल की चांडालों को देने का प्रसंग आया तो शुचिवादी ने मना कर दिया और घर के नौकरों से ही उसे बैल की चीर-फाड़ करने को कहा। ___53. कछुआ और बादल :- सेवाल और कमल-पत्रों से ढंका हुआ एक बड़ा तालाब था। उसमें कछुओं का परिवार रहता था। एक दिन तालाब की काई में कोई छेद हो गया। उससे ऊपर का नील गगन दिखायी पड़ने लगा। इसे देखकर एक कछुआ आनन्दित हुआ। उसने इस सुन्दर दृश्य को अपने मित्रों, स्वजनों को भी दिखाना चाहा। वह उन्हें बुलाकर जब तक वहाँ लाया तब तक वह काई का छिद्र ही लोप हो चुका था। __यहाँ पर तालाब संसार का प्रतीक है, कछुआ मनुष्य का। काई कर्मों का प्रतीक है, उसका छिद्र सम्यक्त्व का। नील गगन संयम का स्पक है और कछुए का वापिस लौटना संसार की आसक्ति का। अनात्मप्रज्ञ के अवसाद का यह स्पक एक उदाहरण है। कच्छप का दृष्टान्त अन्यत्र भी प्रचलित है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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