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________________ कथानक तरह-तरह के/23 उदाहरण है। कूणिक राजा जैन एवं बौद्ध दोनों ही परम्परा में पर्याप्त चर्चित है। दूसरी कथा अंबड परिव्राजक की है, जिसने अपने शिष्यों सहित महावीर का उपदेश सुना था। अंबड के दृढ़ सम्यक्त्व का प्रतिपादन इस कथा की विशेषता है। आगम ग्रन्थों में श्रमण, श्रमणी एवं श्रमणोपासकों के कथानकों के साथ ही श्रमणोपासिकाओं के कथानक धम्मकहाणुओगो में अलग से संग्रहीत नहीं किये गये हैं। संभवतः श्रमणोपासकों के कथानकों के साथ ही उनकी पत्नियों के उल्लेख हो जाने से आगम ग्रन्थों में अलग से उनके कथानक कम अंकित हुए हैं। हो सकता है कि नारियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण भी इसमें एक कारण रहा है। अन्यथा उस समय की शीलवती एवं धार्मिक महिलाओं का महावीर के शासन को समुन्नत करने में कम योगदान नहीं रहा है। निण्हव कथानक : भगवती सूत्र में वर्णित जामिल एवं गोशालक आदि सात निण्हवों के कथानक भी आगम कथा-साहित्य में अपना विशेष महत्व रखते हैं। क्योंकि प्रतिपक्ष का प्रतिनिधित्व इन्हीं के द्वारा होता है। महावीर की जीवनी एवं चिन्तन को समझने के लिए इन निण्हवों की कथा को समझना आवश्यक है। बौद्ध साहित्य में भी गोशालक का कथानक है। वहाँ उसे मक्खली गोशाल कहा गया है। विद्वानों ने इस सम्बन्ध में पर्याप्त गवेषणा की है, जिससे यह प्रमाणित है कि गोशालक आजीवक सम्प्रदाय का नेता था। प्रकीर्णक कथानक : धम्मकहाणुओगो के षष्ठ प्रकीर्णक खण्ड में आगमों में प्राप्त फुटकर कथाएं संकलित हैं। इनमें से अधिकांश ज्ञाताधर्मकथा एवं विपाकसूत्र में प्राप्त हैं। इन कथाओं को दृष्टान्त-कथाएँ कहा जा सकता है। विभिन्न अवसरों पर इन कथाओं के उदाहरण देकर कर्मसिद्धान्त एवं अन्य तत्वदर्शन को स्पष्ट किया गया है। रथमूसलसंग्राम के वर्णन द्वारा युद्ध में नरसंहार से होने वाली क्षति को स्पष्ट किया गया है। और सचेत किया गया है कि युद्ध में मरने से सभी को स्वर्ग नहीं मिलता है। इस कथा में राजा श्रेणिक, रानी चेलना एवं कूणिक के जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है।66 विजय चोर की कथा एक प्रतीक कथा है। इसमें दो विरोधी शक्तियों का एकीकरण दिखाकर जैन दर्शन के अनेकान्तवाद को प्रकारान्तर से स्पष्ट किया गया है। आत्मा और शरीर के सम्बन्ध को भी कथाकार ने प्रतीकों के माध्यम से प्रकट किया है। मयूरी-अंडक नामक कथा कौतूहल-वर्धक कथा है। श्रद्धा एवं शंकाशील मन के स्वरूप को प्रकट करने के लिए यह कथा विशेष महत्व की है। पशु-पक्षी के प्रशिक्षण की सूचना भी इस कथा से मिलती है। दो कछुओं की कहानी से चंचल प्रकृति एवं संयमित प्रकृति वाले साधकों के परिणामों का पता चलता है। श्रृगाल की चालाकी अवसरवादी व्यक्तियों की मनोवृत्ति को प्रकट करती है। ज्ञाताधर्मकथा की रोहणी कथा आगम-साहित्य की श्रेष्ठ कथाओं में से है। परिवार के सदस्यों के विभिन्न स्वभावों को इसमें प्रकट किया गया है। चार बहुओं की कथा के नाम से इस कथा ने परवर्ती कथा साहित्य में पर्याप्त स्थान पाया है। इस कथा ने विदेशी कथा साहित्य को भी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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