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________________ कथानक तरह-तरह के/19 नामि प्रत्येकबुद्ध हैं। 9वें अध्ययन की कथा प्रत्येकबुद्ध नमि से सम्बन्धित है। यह आश्चर्यजनक है कि जैन परम्परा में ऋषिभाषित प्रकीर्णक में 45 प्रत्येकबुद्धों का जीवन संकलित हैं। किन्तु इनमें नमि प्रत्येकबुद्ध का नाम नहीं है। इससे भी संकेत मिलता है कि यह कथा बौद्ध-परम्परा से जैन साहित्य में गृहीत हुई है। श्रमण कथानकों में मेघकुमार की कथा बहुत प्रसिद्ध है। यह कथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्व की है। ज्ञाताधर्म में मेधकुमार की प्रव्रज्या आदि का जो वर्णन है, उससे कथा के निम्न प्रमुख भाग ज्ञात होते हैं 1. राजा श्रेणिक, रानी धारिणी और अभयकुमार की कथा। 2. मेघकुमार का जन्म, शिक्षा, विवाह आदि। 3. महावीर के उपदेश से वैराग्य भावना। 4. माता-पिता एवं मेघकुमार के बीच वैराग्य के सम्बन्ध में वार्तालाप। 5. मेघ की दीक्षा का महोत्सव। 6. मेघमुनि को रात्रि में शय्या-परीषह एवं उससे श्रमण-जीवन के प्रति उदासीनता। 7. महावीर द्वारा मेधकुमार के पूर्वभव सुनाकर उसे पुनः दीक्षा में दृढ़ करना। 8. पूर्वभवों में सुमेरुप्रभ हाथी और खरगोश की कथा । यह कथा कुछ अंशों में गजमुकुमाल की कथा से मिलती-जुलती है, जिसे इसका विकसित रूप माना जा सकता है। जो कार्य इस कथा में अभयकुमार ने किये है, उसमें श्रीकृष्ण द्वारा किये जाते हैं। वैराग्य-प्राप्ति के लिए माता-पिता की आज्ञा लेना एवं उनके बीच संवाद होना यह एक प्रचलित अभिप्रादा है। बौद्ध साहित्य में भी इसका उल्लेख है। मेघकुमार की कथा की भाँति बौद्ध साहित्य में नन्द की दीक्षा का विवरण प्राप्त है। यद्यपि कथा के गठन में दोनों में कुछ भिन्नता है। यथा1. मेघकुमार अपने गृहस्थ जीवन की प्रतिष्ठा और सुख-सुविधा को ध्यान में रखते हुए मुनिसंघ में रात्रि में हुए अपमान और सोने के कष्ट के कारण श्रमणचर्या से उदासीन होता है। जबकि नन्द को अपनी सुन्दर पत्नी जनपद-कल्याणी की बहुत याद आती है और वह भिक्षु-जीवन से उदासीन हो जाता है। 2. महावीर मेघमुमार को उसके पूर्व-जन्म में सहन किये गये कष्ट को याद दिलाते हुए उसे पुनः श्रमण जीवन के प्रति आश्वस्त करते हैं। जबकि बुद्ध नन्द को एक कुरूप बन्दरिया तथा स्वर्ग की अप्सराओं के सौन्दर्य को दिखाकर उसे भिक्षु जीवन में पुन: प्रतिष्ठित करते हैं। इस तरह साधना से विचलित होने और उसमें पनः प्रतिष्ठित होने का अभिप्राय इन दोनों कथाओं में है। 3. इन कथाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि समाज के प्रतिष्ठित वर्ग के युवको को मुनिसंघ में दीक्षित करना महावीर और बुद्ध दोनों के लिए आवश्यक हो गया था ताकि अन्य वर्ग के लोग भी इस ओर आकृष्ट हो सकें। 4. दोनों कथाओं के नायकों की तुलना करने पर मेघकुमार का जीवन अधिक प्रभावित करता है। क्योंकि उसमें पूर्वजन्म में भी असीम करुणा और सहनशीलता थी तथा मुनि-जीवन में भी वह प्रतिष्ठा और घमण्ड से ऊपर उठ चुका था। यद्यपि नन्द भी अपने पूर्वजन्मों में हाथी था तथा उसकी घटना भी लगभग समान है।56 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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