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________________ 8 / प्राकृत कथा - साहित्य परिशीलन करने की कथाएं हैं। इनमें कौतूहल तत्व की प्रधानता है । पुष्पचूला में दश देवियों का वर्णन है। उनमें पूर्वभव भी वर्णित है। वृष्णिदशा में कृष्ण कथा का विस्तार है। इसमें निषध कुमार की कथा आकर्षक है ! मूलसूत्र : मूलसूत्रों में कथा - साहित्य की दृष्टि से उत्तराध्ययनसूत्र विशेष महत्व का है। इसमें शिक्षाप्रद एवं भावनाप्रद कथाओं का समावेश है। राजर्षि संजय (18), मृगापुत्र ( 19 ) रथनेमि ( 21 ) आदि इसमें वैराग्यप्रधान कथाएँ हैं । नमि- करकण्ड, द्विमुख आदि (18) प्रत्येकबुद्धों की कथाएं हैं। कुछ दृष्टान्त कथाएँ इसमें दी गई हैं। कुतिया, सूअर, मृग, बकरा, विडाल आदि के दृष्टान्त पशु-कथाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। चोर, गाड़ीवान, ग्वाला आदि के दृष्टान्त लोक-कथाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं । इसी तरह के अन्य कई दृष्टान्त कथा - बीज के रूप में प्रस्तुत हुए हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में यद्यपि प्राकृत गाथाओं में कथा - संकेत ही अधिक हैं, किन्तु उनका विकास इस ग्रन्थ के व्याख्या साहित्य में अच्छी तरह हुआ है। अतः कथाओं के विकास को समझने की दृष्टि से उत्तराध्ययन सूत्र का विशेष महत्व है। इस ग्रन्थ की कथाओं की समानता बौद्ध साहित्य और ब्राह्मण साहित्य के प्राचीर आख्यानों से भी होती है । अतः कथाओं के तुलनात्मक अध्ययन की भी इस ग्रन्थ की सामग्री आगे बढ़ाती है। आगम साहित्य के प्रायः इन सभी ग्रन्थों से कथात्मक सामग्री का चयन कर उसे एक स्थान पर धम्मकहाणुओगो में मुनि श्री कमलजी ने एकत्र कर दिया है। इस चयन में यह भी दृष्टि देख को मिलती है कि किसी एक कथा की सामग्री यदि भिन्न-भिन्न आगम ग्रन्थों में प्राप्त है तो पुनरावृत्ति से बचते हुए उसे एक साथ ही संकलित कर दिया गया है। यह भी ध्यान रखा गया है। कि इससे कथा क्रम भी न टूटे। इस तरह " धम्मकहाणुओग" आगम साहित्य का व्यवस्थित कथा- कोश कहा जा सकता है। इस ग्रन्थ में कथाओं का पात्रों की प्रधानता की दृष्टि से इस प्रकार विभाजन किया गया है (क) उत्तम पुरुषों के कथानक (मूल पृ. 1-144 ) ( हिन्दी संस्करण - पृ. 1-257) प्रथम स्कन्ध- 1. कुलकर, 2. ऋषभचरित, 3. मल्ली-चरित, 4. अरिष्टनेमि, 5. पार्श्वचरित, 6. महावीरचरित, 7. महापद्म चरित, 8. तीर्थंकरों की दीक्षा, 9. भरत चक्रवर्ती-चरित, 10. चक्रवर्ती - दीक्षा, 11. बलदेव - वासुदेव। (ख) श्रमण कथानक (मूल पृ. 1-176 ) ( हिन्दी संस्करण द्वितीय स्कन्ध पृ. 1-379 ) - 1. महाबल, 2. कार्तिक श्रेष्ठि आदि के कथानक, 3. गंगदत्त 4. चित्त सम्भूति, 5. निषध, 6. गौतम एवं अन्य श्रमण, 7. अनीयश कुमार आदि, 8 गजसुकुमाल, 9. सुकुख आदि 10. जालि आदि श्रमण, 11. थावच्चापुत्र आदि 12. रथनेमि 13. अगंती, पूर्णभद्र आदि 14. जितशत्रु एवं सुबुद्धि कथानक 15. नमिराजर्षि, 16. ऋषभदत्त एवं देवानन्दा का चरित, 17. मौरियपुत्र तपस्वी, 18. आद्रक एवं अन्य तीर्थंकर, 19. अतिमुक्तकुमार, 20. अलक्षराजा, 21. मेघकुमार, 22. मकातिश्रमण, 23. अर्जुन मालाकार 24. कश्यप श्रमण, 25. श्रेणिकपुत्र जालक आदि 26. धन्ना सार्थवाह, 27. सुनक्षत्र, 28. सुबाहुकुमार, 29. भद्रनन्दि आदि भ्रमण, 30 पद्म श्रमण, 31. हरिकेशबल, 32. जयघोष - विजयघोष, 33. अनाथी महा-निग्रन्थ, 34. समुद्रपालीय, 35. संजय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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