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________________ 114/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन दृष्टान्त के साथ ही भयानक बन का भी चित्रण है। बीकानेर स्थित जयचन्द्रजी के उपासरे में भी मधुबिन्दु का एक भित्ति चित्र देखने को मिला, जो लगभग अबसे 80 वर्ष पूर्व का है। चित्रकारश्री नथमल चाण्डक, जयपुर ने भी मधुबिन्दु अभिप्राय के चित्र प्रकाशित किये हैं, जो जैन श्रावकों के घरों पर लगे मिलते हैं। बीकानेर के आदिनाथ मंदिर में उनका एक चित्र देखने को मिला। चित्र का शीर्षक लोभ से मुत्यु दिया गया है। भित्ति-चित्रों से यह चित्र भिन्न है। मधुबिन्दु अभिप्राय संगमरमर की कलाकृतियों में भी उत्कीर्ण हुआ है। राजस्थान के कुछ जैन-मन्दिरों की संगमरमर की पट्टियों में मधुबिन्दु दृष्टान्त उत्कीर्ण हुआ है।22 सागर तथा आरा आदि स्थानों के मानस्तम्मों में भी इस अभिप्राय को चित्रित किया गया है। इस तरह अन्य अनेक कलागत सन्दर्भ मधु-बिन्दु अभिप्राय के उपलब्ध हो सकते हैं, जिनके स्वतन्त्र अध्ययन की आवश्यकता है। मधुबिन्दु के प्रतीक हस्ती वटवृक्ष आदि तो भारतीय कला के अभिन्न अंग हैं। अनेक जगह उनका चित्रण हुआ है। अभिप्राय के प्रतीक : प्रस्तुत अभिप्राय में बिम्बप्रतीकों द्वारा संसार-संकटों को प्रदर्शित किया गया है। दृष्टान्त के विभिन्न रूपान्तरों में कुछ प्रतीकों की योजना यथावत है, कुछ प्रतीकों में परिवर्तन है। यहां पर कुछ प्रमुख प्रतीकों पर विचार कर लेने से यह स्पष्ट हो जायगा। 1. पथभ्रष्ट राही - महाभारत में इसके लिखे ब्राह्मण को चुना गया है। प्राकृत कथाओं में एक सामान्य पुरुष है। ब्राह्मण की दरिद्रता एवं अतृप्तवृत्ति के कारण ही सम्भवतः महाभारतकार ने उसे दृष्टान्त का केन्द्रबिन्दु बनाया है। स्पष्टीकरण में ब्राह्मण किसका प्रतीक है, यह नहीं बताया गया। प्राकृत-कथाओं का पुरुष जीव का प्रतीक है। जिस तरह पुरुष बन में पथभ्रष्ट होकर इधर-उधर घूमता है, उसी प्रकार यह जीव अज्ञान-वश चारों गतियों के चक्कर लगाता है। 2. वनहस्ती - महाभारत में हाथी का स्वरुप ही विचित्र है और उसकी प्रतीक योजना भी। सम्भवतः समवत्सर, ऋतुओं एवं माह से सम्बन्ध बिठाने के लिये ही हाथी को 6 मुख, 12 पांव एवं श्वेत कृष्ण रंग वाला माना गया है। प्राकृत रूपान्तरों में सर्वत्र हाथी को मृत्यु का प्रतीक स्वीकार किया है। भारतीय संस्कृति और साहित्य के लिए यह एक नई प्रतीक-योजना है। भारतीय कला और साहित्य में हाथी का प्रतीक सर्वाधिक प्रयुक्त हुआ है। कमल और हाथी के प्रतीकों के बिना कोई कलाकृति पूर्ण नहीं समझी जाती थी। प्रो.डा. नारवने ने 'द एलीफेन्ट एण्ड लोटसे नामक पुस्तक में विस्तार से हाथी के प्रतीकों पर विचार किया है, किन्तु कहीं भी उन्होंने हाथी को मृत्यु का प्रतीक नहीं माना। सामान्य रूप से भी हाथी पराक्रम, विशालता एवं शुभ का प्रतीक रहा है। भगवान् बुद्ध का प्रतीक हाथी को गानकर उसकी अर्चना की जाती रही है। जैन-साहित्य में माता के स्वप्नों में हस्ती-दर्शन, तीर्थकर के चिन्ह में हस्ती, इन्द्र और ऐरावत हस्ती, अनेकान्त-दर्शन में हस्ती और अंधे इत्यादि अनेक जगह हस्ती प्रतीक का प्रयोग हुआ है। किन्तु कहीं भी उसे मृत्यु एवं अशुभ का प्रतीक नहीं माना गया। इस अभिप्राय में-वह मृत्यु का प्रतीक कैसे हो गया, यह विचारणीय है। प्रस्तुत अभिप्राय के अधिकांश रूपांतरों ने हस्ती को मृत्यु का प्रतीक माना है। मृत्यु को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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