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________________ पालि-प्राकृत कथाओं के अभिप्राय/95 बैठकर जहाज में आ गया। जहाज द्वारा तट पर पहुँच कर अपने सम्बन्धी-जनों से मिल कर आनन्द का अनुभव करने लगा। इस कथानक में समुद्र संसार का प्रतीक है, आंधी से विक्षुब्ध तरंगें जन्म-जरा-मरण की प्रतीक और कुडंगद्रीप मनुष्य जन्म का । तीन वणिक तीन प्रकार के जीव हैं। जलयान भग्न हो कुडंगद्वीप में पहुंचना आयु समाप्ति के बाद मनुष्य जन्म पाना है। कादम्बरी वृक्ष महिलाओं के प्रतीक हैं, उनमें फल आना सन्तान या धन-सम्पत्ति का प्रतीक है। उनकी रक्षा करना इनके झूठे मोह में फंसना है। निर्यामक धर्माचार्य है, नौका दीक्षा और तट प्राप्त करना मोक्ष की उपलब्धि है।16 पुण्डरीक : पुण्डरीक का कथानक निर्वाण की प्राप्ति मनुष्य के अपने हाथ में है, इस ओर सकेत करता है। एक सरोवर जल और कीचड़ से भरा हुआ है। उसमें अनेक श्वेत कमल विकसित हैं। सबके बीच में खिला हुआ विशाल श्वेत कमल बहुत ही मनोहर दिख रहा है। पूर्व दिशा से एक पुरुष आता है और उस श्वेत कमल पर मोहित हो उसे लेने लगता है, परन्तु कमल तक न पहुँच कर बीच में फंस कर रह जाता है। अन्य तीन दिशाओं से आये हुए पुरुषों की भी यही दुर्गति होती है। अन्त में एक वीतरागी और संसार तरण का विशेषज्ञ भिक्षु वहाँ आता है। वह कमल और इन फंसे हुए व्यक्तियों को देख कर सम्पूर्ण रहस्य को हृदयगंम कर लेता है। अतः वह सरोवर के किनारे पर ही खड़ा होकर श्वेत कमल को अपने पास बुला लेता है। श्वेत कमल उसके पास आ गिरता है।17 इस दृष्टान्त में वर्णित सरोवर संसार है, पानी कर्म, कीचड़ काम-भोग, विराट श्वेत कमल राजा और अन्य कमल जन-समुदाय हैं। चार पुरुष विभिन्न मतवादी है और भिक्षु सद्धर्म है। सरोवर का किनारा संघ है, भिक्षु का कमल को बुलाना धर्मोपदेश। और कमल का आ जाना निर्वाण लाभ है।18 मधुबिन्दु : मधुबिन्दु-अभिप्राय भारतीय कथा-साहित्य में बहुत लोकप्रिय रहा है। इसके पीछे जो चिरन्तन सत्य विद्यमान है जसे कोई भी चिन्तनशील विचारक व धर्म नहीं नकार सका। सांसारिक जीवन की इतनी सुन्दर व्याख्या अन्यत्र उपलब्ध नहीं होती। महाभारत, ब्राह्मण, जैन, बौद्ध, मुसलमान और यहूदी कथाओं में थोड़े परिवर्तन के साथ यह दार्शनिक अभिप्राय प्राप्त होता है। भारत के बाहर भी यह कथा पायी जाती है। प्राकृत कथाओं में इस अभिप्राय की कथा यह है - कोई एक दरिद्र पुरुष परदेश जाते हुए भयानक अटवी में पहुंचा। उसने देखा कि एक जंगली हाथी उसका पीछा कर रहा है। वह व्यक्ति भागने लगा। आगे जाकर देखा तो सामने एक दुष्ट राक्षसी तलवार लेकर खड़ी थी। उसकी समझ में न आया कि वह क्या करे। इतने में उसे वट का एक विशाल वृक्ष दिखायी पड़ा। वह दौड़कर वृक्ष के पास पहुँचा, लेकिन उसके ऊपर चढ़ न सका। वृक्ष के पास ही तृणों से आच्छादित एक कुंआ था। अपनी जान बचाने के लिए वह कुंए में कूद पड़ा। वह कुंए की दीवाल पर उगे हुए एक सरकड़े के ऊपर गिरा। उसने देखा दीवाल के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003809
Book TitlePrakrit Katha Sahitya Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherSanghi Prakashan Jaipur
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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