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प्राकृत भारती हिययत्थं पि ह बालं कुमरो न निरिक्खए कलारसिओ। आसङ्काए गुरूणं विज्जाए गहणलोभेण ।।२७।। अन्तदिणम्मि तीए वम्महसरपसरविहुरियमणाए । गहणे कलाण सत्तो पहओ उ असोगगुच्छेणं ।।२८॥ कूमरेण तम्मि दियहे सा वाला पलोइया व सविसेसं ।
कङ्केल्लिपल्लवन्तरियतणुलया संभमुब्भन्ता ॥२९।। चिन्तियं च
किं एसा अमरविलासिणी उ अह होज्ज नागकन्न व्व । कमल व्व किं नु एसा सरस्सई किं व पच्चक्खा ॥३०॥ अहवा पुच्छामि इमं कज्जेणं केण चिट्ठइ एत्थं । इय चिन्तिऊण हि यए कुमरो पयर्ड इमं भणइ ।।३१।। "का सि तुमं वरवाले ईसि पयडेसि कीस अप्पाणं । विज्जागहणासत्तं कीस ममं सुयणु खोभेसि" ॥३२।। सुणिउकुमारवयणं वियसियदिट्टीए विहसिय मुहीए । पयडन्तकिरणावलीए तीए इमं भणियं ।।३३।। "नयरपहाणस्स अहं धूया सेट्ठिस्स बन्धुदत्तस्स । नामेण मयणमञ्जरी इह चेव विवाहिया नयरे" ॥३४॥ जदिवसाओ दिट्ठो सुन्दर तं कुसुमचावसारिच्छो ।
तद्दिथहाओ मज्झं असुहतरु वढिओ हियए ।।३५।। जण--
निद्दा वि हु नट्ठा लोयणाण देहम्मि वड्ढिओ दाहो। असणं पि नो य रुच्चइ गुरुवियणा उत्तमङ्गम्मि ॥३६॥ तावच्चिय होइ सुहं जाव न कीरइ पिओ जणो को वि। पियसङ्गो जेण कओ दुक्खाण समप्पिओ अप्प ॥३७॥ पेरिज्जन्तो उ पुराकएहि कम्मेहि केहि वि वराओ। सुहमिच्छन्तो दुल्लहजणाणुराए जणो पडइ ॥३८।। ता जइ मए समाण सङ्गं न ग कुणसि तरुणिमणहरणं । होहं तुह नियवज्झा फुडं जओ नत्थि मे जीयं" ।।३९॥ सो निसुणिऊण वयणं तीए बालाए चिन्तए हियए । मरइ फुडं चिय एसा मयणमहाजलणदड्ढङ्गी ॥४०॥
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