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________________ २२ प्राकृत भारती दिनों में धर्म-साधना करना इस ग्रन्थ का प्रमुख स्वर है। किन्तु लौकिक पक्ष भी उतना ही सबल है । इस ग्रन्थ की कथावस्तु के आधार पर जायसी के पद्मावत का इसे मूल आधार माना जाता है। प्राकृत के इन कथा-ग्रन्थों के अतिरिक्त गद्य में लिखी गयी अन्य रचनाएँ भी उपलब्ध हैं। लगभग १२वीं शताब्दी में आचार्य सुमतिसूरि ने जिनदत्ताख्यान नामक ग्रन्थ लिखा है। वर्धमानसूरि द्वारा सन् १०८३ में लिखित मनोरमाकहा एक सरस कथा है। संघतिलक आचार्य ने लगभग १२वीं शताब्दी में आरामसोहाकहा की रचना की है। यह कथा विशुद्ध लौकिक कथा है। इन सब कथा-ग्रन्थों का अभी व्यापक प्रचार नहीं हुआ है। इनकी कथा के सूक्ष्म अध्ययन से भारतीय कथा-साहित्य के कई पक्ष समृद्ध हो सकते हैं। पाइयविन्नाणकहा-श्री विजयकस्तूरसूरि ने २०वीं शताब्दी में कथाप्रणयन को जीवित रखा है। उन्होंने इस पुस्तक में ५५ कथाएँ लिखी हैं । प्राकृत गद्य में लिखी ये कथाएँ लौकिक-जीवन और परम्परा के चित्र को उजागर करती हैं। रयणवालकहा-श्री चन्दनमुनि प्राकृत के आधुनिक लेखक हैं । उन्होंने इस ग्रन्थ में रत्नपाल की कथा को प्राकृत के प्रांजल गद्य में प्रस्तुत किया है । इस ग्रन्थ को पढ़ने से प्राकृत-कथाओं की समृद्ध परम्परा का आभास हो जाता है। २. प्राकृत चरित-साहित्य : प्राकृत गद्य का प्रयोग आगम ग्रन्थों और कथा-ग्रन्थों के अतिरिक्त प्राकृत के चरित ग्रन्थों में भी हआ है। गद्य-पद्य में मिश्रित रूप से लिखे गये प्राकृत के निम्न प्रमुख चरित ग्रन्थ हैं १. चउप्पनमहापुरिसचरियं, २. जंबुरियं, ३. रयणचूडरायचरियं, ४. सिरिपासनाहचरियं एवं ५. महावीरचरियं आदि । चरित साहित्य के ये ग्रन्थ प्रायः पौराणिक कथानकों पर आधारित हैं। उन्हीं में से ग्रन्थों के नायकों का चयन कर उनके चरितों को विकसित किया गया है । मूल चरितनायक के जीवन को उद्घाटित करने के लिए इन ग्रन्थों में जो अन्य कथाएँ एवं दृष्टान्त दिये गये हैं उनसे इन ग्रन्थों का कथात्मक महत्त्व बढ़ गया है। इन ग्रन्थों का गद्य भाग प्रायः सरल है । पद्य भाग में काव्यात्मक शैली अपनायी गयी है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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