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आठ कथानक
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भिका । जो पुनः पुनः काटे जा सकते हैं, इसलिए मेरे नाम का भी ढोलक बजाओ। अन्य ने कहा
गाथा १४-सदा शुभ ध्यान वाला, नित्य संतुष्ठ, अनुनय करने वाली पत्नी, प्रवास में नहीं जाने वाला, ऋणमुक्त, दो पाँच
सौ अर्थात् हजार मुद्राओं वाला हूँ; अतः मेरे लिए भी ढोल बजाओ। [९] इस प्रकार जान करके चाणक्य के द्वारा धनपतियों से यथोचित् द्रव्य
को माँगा गया । शालियों को कोठार में भरा और उनको काट-काटकर पुनः उत्पन्न किया जाता था। आशा से एक दिन में उत्पन्न किया गया नवनीत माँगा गया। सुवर्ण उत्पादन करने के लिए चाणक्य के द्वारा यांत्रिक पाशे तैयार किये। किसी ने कहा-अच्छी तरह स्थापित किये गये हैं। तब एक दक्ष पुरुष को सीखाया। मुद्राओं से थाल भरकर वह कहता है-यदि मुझे कोई जीतता है, तो थाल को ग्रहण करे अथवा मैं जीतूंगा, तो एक दीनार लूंगा। उसकी इच्छा से पासे डालते हैं, फिर भी कोई जीतने में समर्थ नहीं होता है। जिस तरह वह सरल नहीं है, इसी प्रकार मनुष्य जन्म की प्राप्ति भी सरल नहीं है।
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