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________________ प्राकृत भारती माता ने कहा कि यह धन भेजा गया है अतः तुम मुहूर्त भर पलंग के नीचे छिप जाओ। मूलदेव पलंग के नीचे स्थित हो गया । अचल ने देख लिया। और वह आकर पलंग पर बैठ गया। उसने देवदत्ता को कहा कि नहाने को तैयारी करो। देवदत्ता ने कहा-'ऐसा ही हो। अतः उठो और धोती पहनो, जिससे मालिश की जाय।' अचल ने कहा कि मैंने आज एक स्वप्न देखा कि मैं वस्त्र आदि पहने हुए ही मालिश करवाकर इसी पलंग पर बैठकर नहाया । अतः इस स्वप्न को सत्य करो।' देवदत्ता ने कहा कि तब निश्चित ही ये कीमती गद्दे और तकिये आदि नष्ट हो जायेंगे। अचल ने कहा-इनसे भी अच्छे दूसरे दे दूंगा। माता ने कहा-ऐसा ही हो। तब पलंग पर ही स्थित होकर अचल ने मालिश करवायी उवटन करवाया और ऊष्ण पानी से स्नान किया। उसके नीचे स्थित मूलदेव गन्दगी से भर गया। तभी हथियार लिये हुए पुरुष प्रविष्ठ हुए। माता ने अचल को इशारा किया और उन दुष्टों ने मूलदेव को बालों से पकड़ लिया तथा कहाअरे ! देखो यदि तुम्हारी कोई शरण है तो अब तलाश कर लो। मूलदेव ने भी जब महल में देखा तो वह हाथ में तीक्ष्ण तलवारें धारण किये हुए शरण-रहित मनुष्यों को पाया और सोचा कि यदि मेरे द्वारा इस अपमान का बदला लिया जाता है तो भी मैं इससे (बदला करने में) समर्थ नहीं होऊँगा। क्योंकि मैं हथियार रहित हूँ। अतः पुरुषार्थ का यह अवसर नहीं है। ऐसा सोचकर उसने कहा-जैसा तुम्हें रूचिकर हो वैसा करो। अचल के द्वारा सोचा गया कि आकृति से यह कोई श्रेष्ठ पुरुष ही जान पड़ता है। और संसार में महान्-पुरुषों को विपत्तियाँ सुलभ हैं! कहा भी है गाथा १०-"कौन यहाँ सदा सुखी है, किसकी लक्ष्मी और प्रेम आदि स्थिर है। कौन तिरष्कृत नहीं होता है, कहो ! कौन विधि के द्वारा खंडित नहीं किया गया है ?' तब उसके द्वारा मूलदेव को कहा गया कि इस अवस्था को प्राप्त तुम इस समय मुक्त किये जाते हो। मैं भी विधि के वश से निश्चित ही कभी विपत्ति-व्यसन का पात्र किया जाऊँ तो इसी प्रकार मेरे साथ भी व्यवहार करना।' [११] तब खिन्न मन हुआ मूलदेव नगर से बाहर निकला 'देखो कैसे इनके . द्वारा ठगा गया हूँ, ऐसा सोचते हुए उसने सरोवर में नहा कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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