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________________ वसुनन्दि श्रावकाचार २०७ ६८. जुआरी मनुष्य चिन्ता से न आहार करता है, न रात-दिन नींद लेता है, न कहीं पर किसी भी वस्तु से प्रेम करता है, किन्तु निरन्तर चिन्तातुर रहता है। ६९. जुआ खेलने में उक्त अनेक भयानक दोष जान करके दर्शन गुण को धारण करने वाले अर्थात् दर्शन प्रतिमायुक्त उत्तम पुरुष को जूआ का नित्य ही त्याग करना चाहिये । मद्यदोष वर्णन •७०. मद्य-पान से मनुष्य उन्मत्त होकर अनेक निंदनीय कार्यों को करता है, और इसीलिए इस लोक तथा परलोक में अनन्त दुःखों __ को भोगता है। ७१. मद्यपायी उन्मत्त मनुष्य लोक-मर्यादा का उल्लंघन कर बेसुध होकर रथ्यांगण (चौराहे) में गिर पड़ता है और इस प्रकार पड़े हुए उसके (लार बहते हुए) मुख को कुत्ते जीभ से चाटने लगते हैं । ७२. उसो दशा में कुत्ते उस पर उच्चार (टट्टी) और प्रस्रवण (पेशाब) करते हैं। किन्तु वह मूढमति उसका स्वाद लेकर पड़े-पड़े ही पुनः कहता है कि सुरा (शराब) बहुत मीठी है, मुझे पीने को और दो। ७३. उस बेसुध पड़े हुए मद्यपायी के पास जो कुछ द्रव्य होता है, उसे दूसरे लोग हर ले जाते हैं। पुनः कुछ संज्ञा को प्राप्त कर अर्थात् कुछ होश में आकर गिरता-पड़ता इधर-उधर दौड़ने लगता है। ७४. और इस प्रकार बकता जाता है कि जिस बदमाश ने आज मेरा द्रव्य चुराया है और मुझे क्रुद्ध किया है, उसने यमराज को ही क्रुद्ध किया है, अब वह जीता बच कर कहाँ जायगा, मैं तलवार से उसका सिर काटूंगा। ७५. इस प्रकार कुपित वह गरजता हुआ अपने घर जाकर लकड़ी को लेकर रूष्ट हो सहसा भांडों (बर्तनों) को फोड़ने लगता है। ७६. वह अपने ही पुत्र को, बहिन को, और अन्य भी सबको-जिनको अपनी इच्छा के अनुकूल नहीं समझता है, बलात् मारने लगता है और नहीं बोलने योग्य वचनों को बकता है। ७७. मद्य-पान के वश को प्राप्त हुआ वह इन उपर्युक्त कार्यों को, तथा और भी अनेक लज्जा-योग्य निर्लज्ज कार्यों को करके बहुत पाप का बंध करता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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