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उत्तराध्ययन सूत्र
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५. वे अरिष्टनेमि नामक कुमार लक्षण और स्वरों से संयुक्त एक हजार आठ शुभ लक्षणों को धारण करने वाले गौतम गोत्रीय और कृष्ण कान्ति वाले थे ।
६. वे ( अरष्टिनेमि कुमार) वज्र ऋषभ नाराच संहनन वाले, समचतुरस्रसंस्थान वाले और मछली के उदर के समान सुन्दर उदर वाले थे । श्री कृष्ण वासुदेव ने अरिष्टनेमि कुमार की भार्या बनाने के लिए उग्रसेन राजा से उनकी कन्या राजमती की याचना की ।
७. वह उग्रसेन की श्रेष्ठ कन्या राजमती उत्तम आचार वाली, सुन्दर दृष्टि वाली सभी शुभ लक्षणों से युक्त, विद्युत और सौदामिनी के समान प्रभा वाली थी ।
.८. इसके बाद उस (राजमती) के पिता ( राजा उग्रसेन) ने महाऋद्धि वाले श्री कृष्ण वासुदेव से कहा कि यदि अरिष्टनेमि कुमार यहाँ पधारें तो मैं उन्हें अपनी कन्या दूँ ( अर्थात् यदि अरिष्टनेमि कुमार बरात सजा कर यहाँ पधारें तो मैं अपनी कन्या राजमती का उनके साथ विधिपूर्वक विवाह कर सकता हूँ । )
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( अरिष्टनेमि ) को सभी औषधियों से (मिश्रित जल द्वारा ) स्नान कराया गया, कौतुक मंगल किये गये, दिव्य वस्त्र युगल पहनाया गया और आभूषणों से विभूषित किया गया ।
१०. जिस प्रकार सिर पर चूडामणी (शोभित होती है) उसी प्रकार कृष्ण वासुदेव के मदोन्मत सबसे प्रधान गन्ध हस्ति पर चढ़े हुए अरिष्टनेमि कुमार अत्यधिक शोभित होने लगे ।
११. इसके पश्चात् सिर पर किये जाने वाले छत्र और (दोनों ओर ढुलाये जाने वाले) चँवर और दशार्द्ध चक्र से (समुद्र विजय आदि दश यादवों के परिवार से) चारों ओर से घिरे हुए वह नेमिकुमार ( अत्यधिक ) शोभित होने लगे ।
'१२. यथाक्रम से सज्जित (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल रूप) चतुरंगिणी सेना से तथा मृदंग, ढोल आदि वाद्यों के शब्द आकाश को गुंजित करने लगे ।
१३. इस प्रकार की उत्तम ऋद्धि और कान्ति से सम्पन्न, यादवों में प्रधान वे अरिष्टनेमि कुमार अपने भवन से निकले ।
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