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प्राकृत भारती ५२. “क्या समुद्र में आँधी और तुफान उठ गया है अथवा क्या भयंकर
अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी है, अथवा क्या शत्रु की सेना ने आक्रमण
कर दिया है अथवा क्या वज्रपात हो गया है ?" ५३. इसी बीच आश्चर्य चकित उस राजकुमार ने सहसा ही देखा कि एक
मदोन्मत्त हाथी ने खम्भे के समान खुंटा तोड़ दिया है और पलान
(आसन) गिरा दिया है। ५४. उस राजकुमार अगडदत्त ने महावत से रहित एवं सूंड की पहुँच तक
की वस्तुओं को नष्ट-भ्रष्ट करते हुए, तथा अकारण ही यमराज के
समान क्रोधित हाथी को सीधे मुख की ओर भागते हुए देखा। ५५. जिसने पैर में बाँधे गये रस्से को तोड़ दिया था तथा जिसने घर,
बाजार, एवं मंदिरों को चूर-चूर कर दिया था, ऐसा वह प्रचण्ड
हाथी, क्षणमात्र में ही उस कुमार अगडदत्त के समीप पहुँचा। ५६. उस असाधारण सौन्दर्य वाले कुमार अगड़दत्त को देखकर नागरिकों
ने गम्भीर स्वर से कहा-"हाथी के प्रहार से हटो, हटो।" "५७. कुमार ने भी निपुणतापूर्वक गति करने वाले अपने अश्व को छोड़कर
इन्द्र के हाथी ऐरावत के समान उस हाथी को ललकारा । ५८. जिसके गण्डस्थल (माथे) से मजदल प्रवाहित हो रहा था, ऐसे यम
राज के समान क्रुद्ध उस हाथी ने, कुमार अगड़दत्त की ललकार को
सुनकर तत्काल ही उसके ऊपर भयंकर प्रहार किया। ५९. निर्भीक एवं प्रसन्नचित्त उस राजकुमार अगडदत्त ने अपने दुपट्टे
(चादर) को लपेट कर दौड़ते हुए उस हाथी की सूड की ओर फेंका । ६०. वह हाथी गुस्से से धमधम करता हुआ जब लपेटी हई उस गोल
चादर पर दाँतों की टक्कर मारने लगा तभी उस राजकुमार ने भी
हाथी की पीठ पर कठोर घूसे का प्रहार किया। ६१. तत्काल ही वह हाथी उस राजकुमार अगडदत्त की मुष्टि के प्रहार
से पीछे मुड़ा, दौड़ने लगा, चलने लगा, लड़खड़ाने लगा, पैंतरे बदलने लगा, चक्के के समान घूमने लगा और ऋद्ध होकर धमधम
करने लगा। ६२. अत्यधिक समय तक उस श्रष्ठ हाथी को थकाकर तथा उसे अपने
वश में कर वह राजकुमार अगडदत्त उसके कन्धे पर सवार हो गया।
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