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________________ १८० प्राकृत भारती ४६. इस सम्बन्ध को सुनकर वैराग्य को प्राप्त कुमार के माता-पिता छोटे पुत्र को राज्य पर बैठाकर उन मुनिराज के समीप ही दीक्षित हो गये। ४७. वे दुष्कर तप का आचरण करते हुए, दोषों से रहित आहार का पारायण करते हुए, अपरिग्रह से युक्त मन वाले, तीन गुप्तियों से संयमित होकर विहार करने लगे। ४८. किसी एक दिन अनेक गाँवों में विचरण करते हुए वे केवलज्ञानी उन माता-पिता साध्वी-साधुओं के साथ उसी दुर्गिल वन में पहुँचे । ४९. इधर वह यक्षिणी अवधिज्ञान से राजकुमार की आयु को थोड़ा जानकर भक्ति से युक्त अंजली जोड़कर उन केवलज्ञानी को पूछती है५०. "हे भगवन् ! क्या अल्प जीवन ( आयु ) किसी प्रकार से बढ़ाया जाना सम्भव है ?" तो केवलज्ञान के अर्थविस्तार से युक्त वे केवली कहते हैं५१. तीर्थंकर, गणधर, अत्यन्त बलशाली चक्रवर्ती राजा, अतिबल युक्त वासुदेव भी आयु को बढ़ाने में समर्थ नहीं हैं। ५२. जो देव जम्बूद्वीप को छत्र एवं मेरु को दण्ड की तरह उपयोग करने में समर्थ हैं वे देव भी आयु का सन्धान ( वृद्धि ) करने में समर्थ नहीं हैं। ५३. न विद्या, न औषधि, न पिता, न बान्धव, न पुत्र, न अभीष्ट, न कुलदेवता और न ही स्नेह से अनुरक्त जननी, न अर्थ, न स्वजन, न परिजन, न शारीरिक बल और न ही बलशाली सुर-असुर जन आयु का विस्तार करने में समर्थ हैं। ५४. इस तरह केवली के वचन को सुनकर वह उदास-मना अमरी/यक्षिणी देवी सभी तरह से नष्ट हुए शस्त्र वाले की तरह अपने भवन को प्राप्त हुई। ५५. वह कुमार के द्वारा देखी गई, और वचनों से पूछी गयी कि--हे स्वामिनी! आज किस कारण से तुम मन में उदास हो ? ५६. क्या किसी ने तुम्हें दुःख दिया या किसी ने तुम्हारी आज्ञा नहीं मानी अथवा क्या मेरे किसी अपराध से तुम अप्रसन्न हुई हो ? । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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