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________________ श्री कूर्मापुत्र चरित १. असुरेन्द्र एवं सुरेन्द्रों के द्वारा चरणकमलों में नमन किये गये श्री वर्धमान (महावीर स्वामी) को प्रणाम कर मैं संक्षेप में कूर्मापुत्रचरित को कहता हूँ । २. समस्त नीति और नियमों से युक्त समस्त श्रेष्ठ पुरुषों वाले श्रेष्ठ नगर राजगृह के गुणों के निवास स्थान गुणशील नामक उद्यान में (एक बार) वर्धमान जिनेश्वर आये । ३. देवताओं के द्वारा अनेक पापकर्मों को दूर करने वाला मणि, स्वर्ण, चाँदी आदि की प्रभा से चमकने वाला समवशरण बनाया गया । ४. उस समवशरण में बैठे हुए स्वर्ण जैसे शरीर वाले एवं समुद्र की तरह गंभीर भगवान् महावीर दान आदि चार प्रकार वाले अत्यन्त मनोहर धर्म को कहते हैं । ५. १. दान, तप, शील एवं भावना के भेदों से धर्म चार प्रकार का होता है । उन सबमें भाव धर्म को महाप्रभावक जानना चाहिए । ६. भाव, संसार रूपी समुद्र को पार कराने वाली नौका, भाव, स्वर्ग एवं मोक्ष को प्रदान करने वाला एवं भाव, सज्जन व्यक्तियों के लिए मनोवांछित अनिर्वचनीय चिन्तामणि रत्न है । ७. तावों को न जानने वाला एवं चरित्रधर्म को ग्रहण न करने वाला कूर्मापुत्र गृहस्थ अवस्था में रहता हुआ भी भाव धर्म से केवलज्ञान को प्राप्त हुआ । ८. हे गौतम! जो तुम मुझसे कूर्मापुत्र के आश्चर्यजनक चरित को पूछ रहे हो तो एकाग्रमन होकर उस सम्पूर्ण चरित को सुनो। जम्बूदीप नामक द्वीप में भरत क्षेत्र के मध्य भाग में जगत् प्रसिद्ध दुर्गमपुर नामक एक नगर है । १०. वहाँ पर अपने प्रतापरूपी लक्ष्मी से सूर्य को भी जीतने वाला शत्रुओं के लिए वज्र सदृश द्रोण नामक राजा सदैव निष्कलंक राज्य का पालन करता है । ९. ११. उस राजा के दुमा नामक पटरानी है, जो शंकर देवता की पार्वती एवं विष्णु देवता की लक्ष्मी की तरह है । अनुवादक - डॉ० प्रेमसुमन जैन, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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