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भविष्यवत्तकाव्य
४६. "द्रव्योपार्जन करते हुए जो व्यक्ति स्वजनों के बीच में नहीं रहता,
पुरुषाकृति में उस व्यक्ति को निश्चय ही घर में बन्द महिला के
समान समझो।” ४७. “अतः हम लोग प्रभूत द्रव्यार्जन हेतु सुवर्ण भूमि (वर्तमान बर्मा) चलें
जिससे कि लोगों के मध्य में हम लोग भी पुरुषार्थी कहला सकें।" ४८. यह सुनकर बन्धुदत्त ने कहा कि-"आप लोगों ने ठीक ही कहा है। ": यह बात मेरे हृदय में पहले से ही बसी हुई है ।" . ४९. तब बन्धुदत्त अपने पिता के पास गया और बोला-“हे तात् ! मैं
द्रव्यार्जन हेतु सुवर्णद्वीप जा रहा हूँ।" ५०. धनपति ने उससे कहा-"व्यापारियों के लिए यह उचित भी है (जो
कि तुमने सोचा है) किन्तु हे पुत्र ! इस संसार में अकेले तुम्हीं तो
मेरी आँखों के तारे हो।" ५१. “देशान्तर में जाना कठिन है । समुद्र को पार करना भी कई प्रकार के
उपद्रवों से युक्त होता है । फिर तुम्हें भोग करने के लिए घर में भी
इतनी अधिक सम्पत्ति है कि वह कभी भी समाप्त नहीं होगी।" ५२. तो भी बन्धुदत्त ने जब विदेश जाने का आग्रह नहीं छोड़ा, तब उसके ____ माता-पिता ने भी बड़े कष्टपूर्वक उसे विदेश जाने की अनुमति दे दी। ५३. बन्धुदत्त ने नगर में घोषणा करा दी कि-'जो कोई भी सुवर्णद्वीप
चल रहा हो, उसके समस्त कार्यों में मैं सहायता करूंगा।' ५४. बन्धुदत्त की यह बात सुनकर भविष्यदत्त ने कहा-'हे भाई ! यदि
आपका ऐसा कहना है, तो मैं भी आपके साथ चलँगा।' ५५. यह सुनकर बन्धुदत्त ने विनयपूर्वक कहा कि-'यदि तुम्हारा साथ
मेरे साथ हो और हे भाई ! यदि तुम मेरे साथ विदेश चलो, तब
तो मुझे सभी कार्यों में सफलता मिल ही जायगी।' ५६. उसने पुनः कहा कि-'यदि किसी पुण्य के प्रभाव से विदेशयात्रा में
पिता अथवा भाई साथ में रहें', तो निःसन्देह विदेश भी अपना घर
बन जाता है। ५७. पिता ने द्वीपान्तर जाने सम्बन्धी सभी तैयारियाँ प्रारम्भ कर दी।
वह बन्धुदत्त भी ५०० व्यक्तियों के साथ स्वामी बनकर चलने की तैयारी करने लगा।
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