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________________ कंसवध १३९. तैयार व्यक्तियों के लिए शत्रुओं की संभावना बनी रहती है । कार्य में लगे हुए हम लोगों के लिए भय कहाँ ? २९. यदि इसके बाद भी सामान्य व्यक्ति की तरह स्पष्ट साहस करेगा तो स्वयं क्षय को प्राप्त होगा । तेज अग्नि को ग्रसित करने के उद्यत पतंगों का समूह क्या जल नहीं जाता, अर्थात् अवश्य जल जाता है । ३०. अधिक मद और छल करने में प्रयत्नशील कोई भी विशुद्ध शील वाले हम लोगों के छूने के लिए साहस नहीं कर सकता । स्वच्छ ताराओं के समूह को रात का अंधकार क्या मलिन कर सकता है ? कहिए । ३१. भुजाओं का प्रताप, भुजाओं के घमण्ड से युक्त शत्रुओं के बीच में ही प्रकाशित होता है । क्योंकि अग्नि की ज्वालाओं का समूह क्या ईंधन बिना स्वयं जल सकता है ? अर्थात् नहीं । ३२. (अतः) हम सब व्रज के लोगों के साथ निराकुल होकर कामर सहित गाड़ियों में चढ़े हुए इसी समय चलते हैं। ताकि वह भोजराज आदर का पात्र बने । ३३. ऐसा कहते हुए बलराम के साथ देवकी-सुत (कृष्ण) रथ पर सवार हो जाते हैं और उसके बगल में हाथ के भाग से पकड़ी हुई लगाम वाला वह गंदिनीसुत (अक्रूर) शीघ्र सवार हो जाता है । ३४. राज-भवन की तरह (ऊँचे) रथ में सुखपूर्वक सोते हुए स्वयं रात्रि बिताकर प्रातः सम्मिलित हुए नन्दगोप आदि प्रमुख लोगों के साथ उन माधव ने प्रस्थान किया । ३५. गरुड़ की ध्वजा वाले ( कृष्ण की ) कानों को दुःसह प्रवास वार्ता को सुनकर वियोग से भयभीत गोपिकाएँ गले से निकली आवाज और आँसुओं के जल से अवरुद्ध अक्षर निकालने लगती हैं ३६. खेद है ! हम व्रजांगनाएँ बार-बार हत हुईं ( मारी गईं) अपूर्ण चंद्रमा के होने पर शम्भु मस्तिष्क एवं अकौस्तुभ मणि से विष्णु का वक्षस्थल कितना शोभा पाता है ? ( उसी तरह) नन्द का घर कृष्ण के बिना क्या शोभा पा सकता है ? ३७. अनन्य नाथ (कृष्ण) भी हम लोगों को अनुकम्पा बिना दुःखित शीघ्र छोड़ गए। इस समय भी उसी मनुष्य में जो मन लग रहा है। वह हमारे लिए निश्चय ही हँसी योग्य है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003808
Book TitlePrakrit Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1991
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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