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किंसवध
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९. देवकी-सुत (कृष्ण) कर-कमल से उस (अक्रूर) को पकड़कर आने घर ___ को ले जाते हैं, सुख-शांति पूछते हैं, स्वादिष्ट भोजन कराते हैं, और
फिर कुछ बोलते हैं१०. हे अक्रूर ! तुम्हें देखने से मेरा मन स्नेही बंध के समान हर्षयुक्त
(है)। अरे ! इसमें क्या आश्चर्य ? चंद्रमा के उदित होने पर पुण्डरीक
शीघ्र विकसित होता है। ११. (अक्रूर ने कहा-हे कृष्ण !) सचमुच दिन के प्रदीप की तरह (सूर्य
की तरह) तेजस्वी तीक्षण किरणों वाले भोज राजा (कंस) को मैं जानता हूँ (फिर भी) प्रदीपमान होता हुआ भी वह प्रभाहीन किसी
तरह आप लोगों के कारण प्राण धारण किए हुए है । १२. हम दोनों युगल (संतान) बहुत समय तक रक्षित होने पर भी हमारे
वे माता-पिता जिस बंदी गह की (वेदना) सहन करते रहे, उस दुष्ट संतान के जन्म लेने से संतान रहित होना अच्छा है। शरीर-धारी
सत्य ही कहते हैं। १३. शरीर का भरण-पोषण करने वाले इन माता-पिता और बंधु को
कैसे छोड़ दें ? जगत में जो कोयल की रीति के अनुगामी हैं वे उत्तम
पुरुष क्यों नहीं निन्दा करते हैं अर्थात् अवश्य करते हैं । १४. बहुत कहने से क्या लाभ ? आप अपने आने का कारण कहिए । यह
कहते हुए माधव (कृष्ण) चुप हो गए। क्योंकि भव्यजन (सज्जन)
हित-मित-अक्षर (प्रिय-वचन) बोलते हैं। १५. विशुद्ध शील एवं झुके हुए सिर से वे हरि कंसदूत से सम्बोधित किए
जाते हैं कि तुम्हारा यथेष्ठ दर्शन अच्छा है हमारे आगमन का
प्रयोजन (इसी से) सार्थक हुआ। १६. निरर्थ लगाम, प्रकृष्ट बोध-स्वरूप पथिक यम, नियम, योग अभ्यास
में जो भी तपस्वी सदैव रत रहते हैं वे मेरी दृष्टि से दष्टि-गोचर हैं। १७. सू-निर्मित सौंदर्य के अद्वितीय मंदिर को निर्मल पूर्णिमा के चंद्रमा
की किरणों के समान हास्य से उज्ज्वल तुम्हारे मुख को मेरे जिन
नेत्रों के द्वारा पिया जा रहा है, उसने संसार को जीत लिया। १८. हे माधव ! बढ़े हए पाप-समह से आपके मामा के द्वारा (मैं) रोका . गया। फिर भी इस मुख का दर्शन उत्सव की तरह (बन पड़ा), जिसे वास्तव में ही भाग्य का पलट जाना (कहूँगा)।
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