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पाठ 23 : दमयंती स्वयंवरो
पाठ-परिचय :
सोमप्रभसूरि ने ई. सन् 1184 में कुमारवालपडिवोह नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्य में गुजरात के राजा कुमारपाल का चरित वरिणत है। किन्तु आचार्य हेमचन्द्र द्वारा उनको दिया गया प्रतिबोध भी इस ग्रन्थ का विषय है । इसमें कुल 58 कथाए आयी हैं, जो प्रेरणादायक हैं।
प्रस्तुत प्रसंग नलकथा का है, जो मूलतः द्य तक्रीड़ा के दोषों को प्रकट करने के लिए कही गयी है। प्रस्तुत अंश में दमयन्ती के स्वयंवर का वर्णन है। उसकी सखी भद्रा प्रत्येक राजा का वर्णन करती है और दमयन्ती उस पर अपनी इच्छा प्रकट कर देती है । अन्त में वह नल को वरमाला पहिना देती है।
अस्थि इह भारह खित्ते कोसलदेस म्मि कोसल नयरी। तत्थ इक्खागुकुलुप्पन्नो निरुवमनयचायविक्कमजुत्तो निसहो नाम नियो । तस्स सुदरीदेवीकुक्खिसंभूया जरणमणाणं हे दुवे नंदरणा नलो कूबरो य ।
इप्रो य विदब्भदेस मंडणं कुडिणं नयरं। तत्थ परिकरिजू हसरहो भीमरहो राया। तस्स सयलते उरतरुपुप्फ पुप्फदंती देवी । ताणं विसयसुहमणु हतारण समुप्पन्ना सयलतइलोक्कालंकारभूया धूया ।
तीए तिलो जानो सहजो भालम्मि तरणिपडिबिंबं । सप्पुरिसस्स व वच्छत्थलम्मि सिरिवच्छवररयणं ।।।।।
'जणणीगभगयाए इमीए मए सव्वे वेरिणो दमिय' त्ति पिउणा कयं तीए दमयंति त्ति नामं । सियपक्खचंदलेह व्व सबजरगनयणाणंदिणी पत्ता सा वुड्डि समए समप्पिया कलोवज्झायस्स ।
प्राकृत गद्य-सोपान
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