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बइठ्ठा । तो दळूण उच्छंग-गय-सुप्पकोण-कय-कुम्मासे अहिणवालाणबद्धकरि व्व विझं नियकुलं सरिऊरण रोविउमारद्धा।
तपणंतरं चिंतियं च णाए–'कह महं तइयदिणायो अकय-सुपत्तसंविभागा पारेमि ? सोहणं हवइ जइ किंचि सुपत्तं समागच्छइ ।'
तमो भगवया महावीरो दिण्णो उवयोगो जाव पडिपुण्णो चउब्विहो वि अभिग्गहो ताहे पाणी-पसारियो। दिण्णा तीए सुप्पकोणेण कुम्मासा । पारियो । एत्थं चलियासणा समागया सुरगणा । पाउब्भूयाणि पंचदिवाणि पडिपुण्णपइण्णे, सयल-जगजीव-निक्कारणबंधवे दुठ ठुकम्मकंद उक्कंदरणे पाराविए तिसलानंदणे चंदणबाला वि तित्थयरदाण-धम्मोवज्जिय पुण्णपब्भारेण इह लोगे वि धन्ना जाया ।
तहा वित्थरिया सयले वि तिहयणे कूदिद-निम्मला कित्ती । अहो ...धण्णा, अहो कयत्था, कर,लक्रूणा चदणबाला। सुलद्ध जम्मजीवियफलं 'चंदण बालाए ।
अभ्यास . 1. शब्दार्थ :
दुहिया = पुत्री वसण - आपत्ति प्रासास = सान्त्वना देना हों ढिय = अपहर्ता सम्वत्य = सब जगह वागुर = फंदा अगस्थ = अनर्थ दूम = दुखी होना वाहि ___= रोग मत्त लंब = बालकनी सोयरण = साफ करना मरणार्ग = थोड़ा लीलालट्ठी- हाथ परूढ = दृढ़ पण संधुक्क = धोंकना बोडाविया= मुड़ाया नियल = बेड़ी उबरग = कोठा निद्धड = निकाल दो व.सर = दिन बराई = बेचारी एलुगं = देहरी सुपत्त = सत्पात्र अभिग्गह = प्रतिज्ञा कुमास = उड़द कित्ती = यश
पृ0 49-51 से संक्षिप्त
मनोरमाकहा (सं०- पं० रूपेन्द्र) अहमदाबाद, 1982 रूप में उद्ध त ।
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प्राकृत गद्य-सोपान
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