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________________ पाठ 17 : मित्तस्स कवडं पाठ-परिचय : प्राकृत कथा साहित्य का एक अनुपम ग्रन्थ है- कुवलयमालाकहा । इसे उद्योतनसूरि ने सन् 779 में जानौर (राज.) में लिखा था। इस ग्रन्य में क्रोध, मान, माया, लोभ, और, मोह जैसी वृत्तियों को पात्र बनाकर उनकी कथा कही गयी है। कुवलयमाला धर्म-कथा के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का भी प्रतिनिधि ग्रन्य प्रस्तुत कथांश मायादित्य की कथा का है। मायादित्य और स्थाणु मित्र बन जाते हैं। दोनों धन कमाने के लिए दक्षिण भारत के नगर प्रतिष्ठान जाते हैं। लौटते समय दश रत्नों के रूप में वे अपने धन को एक पोटली में बांधकर लाते हैं । रास्ते में मायादित्य अपने मित्र स्थाणु से कपट-व्यवहार कर रत्नों की पोटली ले जाना चाहता है। किन्तु दुर्भाग्य से वह कंकड़ों की पोटली लेकर भाग निकलता है। रत्न स्थाणु के पास ही रह जाते हैं। फिर भी मायादित्य भित्र को ठगने का प्रयत्न करता रहता है और अन्त में दुःख पाता है । महारणयरीए वारणारसीए पच्छिम-दक्खिणे दिस व ए सालिग्गामं णाम गामं । तहिं च एक्को वइस्सजाई परिवसइ गंगाइच्चो णाम । तम्मि प गामे अणेय-धण-धण्ण-हिरण्ण-सुवण्णसमिद्धजणे वि सो च्चेय एक्को जम्मदरिद्दो । तस्स कवडपुण्णववहारेण मायाइच्चो नाम पसिद्ध जायं । प्रह जम्मि चेय गामे एक्को वारिणयो पुवपरियलिय-विहवो था नाम । तस्स तेण सह मायाइच्चेण कहवि सिणेहो संलग्गो । तेसि मेत्ती जाया। अण्णया धरणज्जणत्थं अण्णम्मि दियहे कयमंगलोवयारा, ग्राउच्छिकरण सयण-गिद्धवग्गं गहिय पच्छयणा रिणगया दुवे वि । तत्थ प्रय गिरिरियासयसंकूलामो अडईओ उल्लंघिऊरण कह कह वि पत्ता प.ट्टणं गाम कृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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