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पाठ 9 : नंदमणिआरस्स जरासेवा पाठ-परिचय :
जाताधर्मकथा में एक ओर धर्म कथाएँ हैं तो दूसरी ओर लौकिक जीवन के भी कई दृष्टान्त हैं। तेरहवें अध्ययन की दर्दु रक (मेंढक) की कथा के प्रसंग में नंद नामक मणिकार (स्वर्णकार) की कथा वरिणत है ।
इस कथा में बतलाया गया है कि एक बार नंद को बहुत प्यास लगी। उमसे दुःखी होकर उसने सोचा कि भूख-प्यास से बहुत से प्राणी दुःखी होते हैं। अत: उनके लिए प्याऊ एवं भोजनशाला आदि बनवानी चाहिए। इसी भावना से नंद ने एक बावड़ी, एक बगीचा, एक चित्रसभा (मनोरंजनशाला), एक रसोइशाला, एक औषधालय और एक अलंकारसभा (सेवाकेन्द्र) बनवायी। इनके द्वारा जनता की उसने निस्वार्थ भाव से सेवा की। नंद के इन्ही लोक-कल्याणकारी कार्यों का वर्णन इस कथा में है।
इस गद्यांश की भाषा अर्धमागधी प्राकृत है ।
पोक्खरिणी :
तएणं गंदे सेणिएणं रण्णा अब्भणूण्णाए समारणो हट्ठ-तुट्ठ राजगिहं मज्झमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता वत्थुपाढयरोइयंसि भूमिभागसि णंद पोक्खरिरिंग खणाविउं पयत्ते यावि होत्था ।
तएणं सा गंदा पोक्खरिणी अणुयुवेणं खणमाणा-खरणमारणा पोक्खरिणी जाया यावि होत्था-चाउकोणा, समतीरा, अणुपुवसुजायवप्पसीयलजला, संछण्णपत्तविस-मुणाला, बहुप्पल-पउम-कुमुदनलिणीसुभगसोगंधिय-पुडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त-पफुल्लकेसरोववेया, परिहत्थ-भमंत-मत्तछप्पय-प्रणेग-सउरणगरण-मिहुण-वियरिय-सदुन्नइय-महुरसरनाइया, पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।
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प्राकृत गद्य-सोपान
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