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________________ सण-बन्धु- सम्मारणदीरगागाहाइ दारण - विसिट्ठ-भोगोवभोगारण रण पज्जत्तो ता कोडि कोडिस कोडसहस्सं वा मग्गामि । ' एवमाइ चिततो सुहकम्मोदएण तक्खरणमेव सुहपरिणाममवगयो संवेगमावन्नो लग्गो परिभाविउं- 'अहो ! लोभस्स विलसियं, दोण्ह सुवण्णमासारण कज्जेणागम्रो लाभमुवद्वियं दठ्ठ रण कोडीहि पि न उवरमइ मणोरहो । अन्न ं च विज्जापढगत्थं विदेसमागम्रो जाव तात्र अवहीरिकरण जरा रिंग, अवगरिणऊण उवज्झाय हिय उवएसं अवमन्निऊरण कुल एएण लोहेण जारामारणोवि मोहियां ।' इय चितिकरण सो कविलो आगो राइसगासं । राइगा भरिणयं किं चितियं ?' ते य निय मरणो रह - वित्थरो कहियो । * 1. शब्दार्थ : खुड्डलश्र = छोटा साहीरा == प्राप्त अरई * दु:ख डिभरूव = सन्तान 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न : = अभ्यास प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International सिट्ठ इब्भं विगुप्प पज्जत = कहा धनी श्रज्भावरण= अध्यापन निस्सा = आश्रय == सरलता विस्तार लज्जित होना सम्भाव पर्याप्त विलसियं सही उत्तर का क्रमांक कोष्ठक में लिखिए : 1. कपिल के पिता को राज्य-सम्मान प्राप्त था (क) धनी होने के कारण (ख) ब्राह्मण होने के कारण (ग) बलशाली होने के कारण (घ) विद्या- सम्पन्न होने से उत्तराध्ययन सुखबोधाटीका ( नेमिचन्द्रसूरि) निर्णयसागर प्रेस, 1937 qrar 124-125 1 = For Personal and Private Use Only [ ] 29 www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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