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किन्तु पुतलियों के रहस्य को जानने में समर्थ नहीं होते है । तब क्रोधित राजा कहता है- 'क्या इतनी बड़ी सभा में कोई भी इनका मूल्य बताने के लिए समर्थ नहीं है ? तुम सब को धिक्कार है।'
तब कालिदास कहता है- 'तीन दिन के भीतर मैं इनका मूल्य अवश्य बता दंगा।' ऐसा कहकर वह पुतलियों को लेकर घर चला गया । बार-बार उनको देखकर वह बहुत विचार करता है । सूक्ष्म दृष्टि से उनको देखता है । तब उन पुतलियों के कान में वह छेदों को देखता है । देखकर उन छेदों में पतला तार डालता है । इस प्रकार तार डालकर उन सबको दे बकर ॐन पर मूल्य अंकित कर देता है। तीसरे दिन के अन्त में राजा की सभा में जाकर राजा के सामने क्रमशः उनको रखकर उस कालिदास (पंडित) ने कहा- 'पहलो पुतली का मूल्य मात्र एक कौड़ी है । दूसरी का एक रुपया तथा तीसरी का मूल्य एक लाख रुपये है।' उस मूल्य को सुनकर सारी सभा आश्चर्ययुक्त हो गयी।
उस विदेशी ने कहा- 'इस विद्वान् ने सच्चा मूल्य बता दिया है। मैं भी उसी का अनुमोदन करता हूँ।' तब राजा कालिदास को पूछता है- 'समान आकार, रंग और रूप वाली इन पुतलियों के अलग-अलग मूल्य क्यों कहे हैं ? ऐसा पूछने पर कालिदास कहता है- 'हे राजन् ! मैंने पहली पुतली का मूल्य मात्र एक कोड़ी कहा है। क्योंकि इसके कान में एक तार डाला तो वह दूसरे कान के छेद से बाहर निकल गया। अत: यह पुतली उपदेश देती है कि "संसार में धर्म (अच्छी बातों) को सुनने वाले तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम श्रोता ऐसा होता है कि जो आत्मकल्याण के वचन को सुनता है, सुनकर उसे दूसरे कान से निकाल देता है । उस वचन के अनुसार स्वयं आवरण नहीं करता है। उस श्रोता को पहली पुतली की तरह जानना चाहए.. उसका कोई मूल्य नहीं है। अत: मैंने प्रथम श्रोता के समान पहली पुतली का, मूल्य मात्र एक कौड़ी कहा है।
2: 'कूहरी पुतली के कान में डाला हुआ तार उसके मुख से निकल गया । वह ऐसा: कहती है कि संसार में कुछ श्रोता ऐसे होते हैं जो आत्महित के वचनों को सुनते हैं,
प्राकृत गद्य-सोलन
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