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________________ नल भी पहुंचा। भीमराजा के द्वारा सम्मान प्राप्त बे श्रेष्ठ आवासों में ठहर गये । स्वर्ण के खंभों से युक्त स्वयंवर-मंडप बनवाया गया। वहाँ गोल सिंहासन लगवाये गये। उन पर राजा लोग बैठे । इसी अवसर पर पिता के आदेश से भाल के तिलक की विस्तीर्ण प्रभा से अलंकृत, सूर्य के बिम्ब को धारण करने वाली पूर्व दिशा की तरह, प्रसन्न मुखवाली, सम्पूर्ण चन्द्रमा से शोभित पूर्णिमा की रात की तरह, श्वेतवस्त्र पहिने हुए दमयन्ती स्वयंवर मंडप को सुशोभित करती हुई वहाँ आयी। उसे देखकर आश्चर्यचकित मुखवाले राजाओं द्वारा चक्षुविक्षेप के लिए वह देखी गयी। गाथा-3. तब राजा के आदेश से अन्तःपुर की प्रतिहारी भद्रा राजकुमारी के सामने राजपुत्रों के पराक्रम (परिचय) को कहने लगी4. 'दृढ़ बाहुबल वाला बल नामक यह काशी नरेश है । यदि इसे वरोगी तो ऊँची लहरों वाली गंगा नदी को देख सकोगी।' दमयन्ती ने कहा 'भद्रे ! काशीवासी दूसरों को ढगने में अभ्यस्त सुने जाते हैं । अत: मेरा मन इसमें नहीं लगता, आगे चलो।' उसी प्रकार आगे बढ़कर भद्रा ने कहा गाथा-5. 'शत्रुरूपी हाथियों के लिए सिंहरूपी यह कोंकण का स्वामी राजा सिंह है । इसको वर कर ग्रीष्मऋतु में कदलीवनों में सुखपूर्वक क्रीड़ा करना।' दमयन्ती ने कहा- 'भद्रे ! कोंकण के लोग अकारण ही क्रोध करने वाले होते हैं । अत: क्षण-क्षण में इनको अनुकूल मैं नही कर पाऊंगी। अत: दूसरे का परिचय दो।' आगे जाकर उसने कहा गाथा-6. 'इन्द्र के समान रूपवाले ये काश्मीर के स्वामी राजा महेन्द्र हैं । कुकुम की क्यारियों में क्रीड़ा करने की इच्छा हो तो इन्हें वरण करो।' राजकुमारी ने कहा- 'भद्रे! मेरा शरीर ठंड से बहुत डरता है, क्या तुम यह नहीं जानती हो ? अत: यहाँ से चलें।' ऐसा कही जाती हुई वह प्रतिहारी आगे जाकर कहने लगी 178 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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