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रूप शिलालेखों की भाषा में सुरक्षित है। सर्व प्रथम सम्राट अशोक ने शिला. लेखों में प्राकृत भाषा का प्रयोग किया। उसके बाद खारबेल का हाथीगुफा शिलालेख प्राकृत में लिखा गया। फिर लगभग 400 ई० तक हजारों शिलालेख प्राकृत में लिखे पाये जाते हैं। इन सबकी भाषा जनबोलियों की मिश्रित भाषा है, जिसे विद्वानों ने 'शिलालेखी प्राकृत' कहा है।
3. निया-प्राकृत : निया प्रदेश (चीनी तुर्किस्तान) से प्राप्त लेखों की भाषा को 'निया प्राकृत' कहा गया है। इस प्राकृत भाषा का तोखारी भाषा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। .
4. धम्मपद को प्राकृत : पालि धम्मपद की तरह प्राकृत में भी लिखा गया एक धम्मपद मिला है। इसकी लिपि खरोष्ठी है । इसकी प्राकृत पश्चिमोत्तर प्रदेश की बोलियों से सम्बन्ध रखती है ।
5. अश्वघोष के नाटकों को प्राकृत : अश्वघोष के नाटकों में प्रयक्त प्राकृत जैन सूत्रों को प्राकृत से भिन्न है । यह भिन्नता प्राकृत के विकास को सूचित करती है। इस समय तक मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी नाम से प्राकृत के भेद हो चुके थे।
___ इस प्रकार प्रथम युगीन प्राकृत भाषा इन आठ सौ वर्षों में प्रयोग की दृष्टि से विभिन्न रूप धारण कर चुकी थी।
ईसा की द्वितीय से छठी शताब्दी तक जिस प्राकृत भाषा में साहित्य लिखा गया है, उसे मध्ययुगोन प्राकृत कहा जाता है । इस युग की प्राकृत को हम साहित्यिक प्राकृत भी कह सकते हैं । किन्तु प्रयोग की भिन्नता की दृष्टि से इस समय तक प्राकृत के स्वरूप में क्रमशः परिवर्तन हो गया था, अतः प्राकृत के वैयाकरणों ने प्राकृत के ये पांच भेद निरूपित किये हैं-अर्धमागधी, शौर. सेनी, महाराष्ट्री, मागधी एवं पैशाची। इनका स्वरूप एवं प्रमुख विशेषताए इस प्रकार हैं:
प्राकृत गद्य-सोपान
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