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________________ २. अणहिलवाडयपुर-वण्णणं अत्थि मही-महिलाए मुहं महंतं मयंक-पडिबिम्बं । जंबुद्दीव-छलेण नहलच्छिं दठ्ठ मुन्नमियं ॥१॥ तुगो नासा-वंसो व्व सोहए तियस-पव्वरो जत्थ । सीया-सीयोयाओ दीहा दिट्ठीओ व सहन्ति ॥२॥ तत्थारोविय-गुण-धरणु-निभं नलाडं व भारहं अत्थि । जत्थ विरायइ विउलो वेयड्ढो रयय-पट्टो व्व ॥३॥ जं गंग-सिंधु-सरिया-मुत्तिय-सरियाहि संगयं सहइ । तीर-वण-पन्ति-कुन्तल-कुलाव-रेहन्त-पेरन्तं ॥४॥ तत्थत्थि तिलय-तुल्लं अणहिलवाडय-पुरं घण-सुवण्णं । पेरन्त-मुत्तयावलिसमो सहइ जत्थ सिय-सालो ॥५॥ गरुषो गुज्जर-देसो नगरागर-गाम-गोउलाइण्णो । । सुर-लोय-रिद्धि-मय-विजय-पंडिओ मंडिओ जेण ॥६॥ जम्मि निरंतर-सुर-भवण-पडिम-ण्हवणंबु-पूर-सित्त व्व । सहला मणोरह-दुमा धम्मिय-लोयस्स जायन्ति ॥७॥ अब्भंलिह-सुर-मंदिर-सिर-विलसिर-कणय-केयरण-भुएहि । नच्चइ व जत्थ लच्छी सुट्ठाण-निवेस-हरिस-वसा ॥८॥ जम्मि महापुरिसाणं धरण-दाणं निरुवमं निएऊरण । अजहत्थ-नाममो लज्जिो व्व दूरं गमो धणयो ।।६।।* कुमारपालप्रतिबोध (सोमप्रभाचार्य) - प्र० सेन्ट्रल लायब्ररी, बड़ौदा, १९२०, से उद्घ त । गाथानुक्रम-सर्ग-१ गाथा ३२, ३३, ३४, ३५, ३६, ३७, ३८, ४० एवं ४२ । प्राकृत काव्य-मंजरी १८७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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