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________________ ११. जो (व्यक्ति) दूसरे को निन्दाकर अपने को (गुणवानों में) स्थापित करने की इच्छा करता है, वह दूसरों के द्वारा कड़वी औषधि पी लेने पर (स्वयं) आरोग्य चाहता है। १२ क्रोध से मनुष्य का अत्यन्त प्यारा व्यक्ति भी मुहूर्त (क्षण) भर में शत्रु हो जाता है। क्रोधी व्यक्ति के अनुचित आचरण से अत्यन्त प्रसिद्ध उसका यश भी नष्ट हो जाता है। १३. घमण्डी व्यक्ति सबका वैरी हो जाता है। मानी व्यक्ति इस लोक और परलोक में कलह, भय, वैर, दुःख और अपमान को अवश्य ही प्राप्त करता है। १४. अभिमान से रहित मनुष्य संसार में स्वजन और जन-सामान्य (सभी) को सदा प्रिय होता है और ज्ञान, यश, धन (आदि) को प्राप्त करता है तथा अपने कार्य को सिद्ध कर लेता ००० पाठ ३० : कवि-मनुभूति १. इस लोक में वे कवि जीतते हैं (सफल होते हैं), जिनकी वाणियों (काव्यों) में ___ सफल अभिव्यक्ति विद्यमान (है। और इसलिए) यह जगत् या तो हर्ष से पूर्ण या तिरस्कार योग्य देखा जाता है । २. स्वकीय वाणी के द्वारा ही निज के गौरव को स्थापित करते हुए जो निश्चय ही प्रशंसा प्राप्त करते हैं, वे महाकवि इस लोक में जीतते हैं (सफल होते हैं)। • यह अनुवाद 'वाक्पतिराज की लोकानुभूति' - डॉ. कमलचन्द सोगाणी की पुस्तक (पाण्डुलिपि) से लिया गया है। उनकी यह पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है। प्राकृत काव्य-मंजरी १८१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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