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११-१२. यहाँ बाजार-मार्ग, यहाँ राजकुल, यहाँ हस्तिशाला, यहाँ महल, यहाँ अश्व
शाला (है)। तब उसे देखकर उसके बुद्धि-वैभव से प्रसन्न हृदयवाला राजा मन में सोचता है- 'यह (रोहत) मेरे मन्त्रिमण्डल के शिरोमरिण पद के (महा मन्त्री) योग्य है । ऐसा -
१३. सोचकर उसको इस प्रकार पूछता है- 'हे पुत्र! कहाँ के रहने वाले, किसके
पुत्र हो ?' (वह) कहता है- 'मैं शिलाग्राम में भरत का पुत्र हूं।'
१४. उसकी श्रेष्ठ बुद्धि के वैभव को जानते हुए राजा नगर को गया। वह (रोहत)
भी (वापिस) आये हुए पिता के द्वारा अपने गाँव में ले जाया गया ।
१५. उसकी बुद्धि की श्रेष्ठता द्वारा आनन्द से भरा हुआ राजा एक बार क्षुद्र ___ (बनावटी) आदेश के द्वारा (रोहत के पास, एक) मुर्गे को भेजकर कहता है
१६, "कि इस अकेले (मुर्गे) का लड़वाओ ।' तब रोहत ने कहा- (उपाय बताया)
कि उस मुर्गे को दर्पण में (उसके) प्रतिबिम्ब से लड़वाओ।
१७. राजा आदेश देता है कि- 'रेत की रस्सी बंटकर भेजो।' रोहत कहता है___'नमूने के लिए पुरानी (रेत की) रस्सी को भेज दो।'
१८. इसके बाद राजा लगभग मरे हुए हाथी को भेजता है और कहलवाता है कि
" (इसकी) मृत्यु के समाचार के अतिरिक्त प्रतिदिन ही (मुझे) हाथो का समाचार कहा जाना चाहिए।'
१६. वे (गाँव वाले) भी प्रतिदिन ही राजा को हाथी का वृतान्त कहते हैं । किन्तु
एक दिन हाथी के मर जाने पर भरतपुत्र (रोहत) कहलवाता है
२०. 'हे राजन! हाथी न चरता है, न चलता है, न साँस लेता है और न निश्वाँस ___ लेता है, न पीता है, न देखता है, केवल (उसका) निश्चेष्ट शरीर स्थित है।'
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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