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________________ ४, उस (भूषण भट्ट) के तुच्छ बुद्धिवाले भी पुत्र कोऊहल के द्वारा यह लीलावई नामक (काव्य) रचा गया है । (उस) कथा-रत्न को सुनो - ५. चन्द्ररूपी सिंह के किरणरूपी अस्त्र (पंजे) से विदारित अंधकार रूपी हाथी के कुम्भस्थल पर फैले हुए नक्षत्ररूपो मुक्ताफल के प्रकाश वाली शरद ऋतु की रात्रि में (उस कथारत्न को सुनो-) ६. इस शरद से चन्द्रमा, चन्द्रमा से भी रात्रि, रात्रि से कुमुदवन, कुमुदवन से भी नदी-तट और नदी-तट से हंस-समूह शोभित होता है । नये कमलनाल के कषैलेपन से विशोधित कंठ से निकले हुए मनोहर (स्वरवाले एवं) शरदरूपी लक्ष्मी के चरणों के नूपरों की आवाज की तरह हंसों का कलरव सुनो। ८, शीतलता से युक्त जल की तरंग के सम्पर्क से ठण्डा किया गया, (और) अर्द्ध विकसित मालती (पुष्प) की सुन्दर कली की सुगन्ध से उत्कृष्ट पवन बह रहा ९. दश दिशारूपी बन्धुओं के मुख पर तिलक-पंक्ति की तरह सरोवर के जल में स्वच्छ तरंगों में हिलते हुए वृक्षों वाली यह वनराजि भी शोभित हो रही है । १०, पुण्य (पवित्र आचरण) के शासन की तरह, सुख-समूहों की जन्म-उत्पत्ति की तरह, आचारों का आदर्श (तथा) सदा गुणों के लिए अच्छे क्षेत्र की तरह (वह देश था)। ११. इस प्रकार के उस (प्रतिष्ठान) नगर में समस्त गुणों से व्याप्त शरीरवाला (एवं) संसार में अच्छी तरह विस्तृत यशवाला सातवाहन राजा (था)। १२. जो वह (राजा) शरीर से रहित होते हुए भी समस्त अंगों व अवयवों से सुन्दर, सुभग (था) अर्थात् युद्धरहित होते हुए भी अमात्य आदि सभी राज्यागों से युक्त प्राकृत काव्य-मंजरी १७१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003806
Book TitlePrakrit Kavya Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages204
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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