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पाठ-परिचय :
गाथा सत्तसई प्राकृत का मुक्तक काव्य है । इसके संकलनकर्ता महाकवि हाल हैं। उन्होंने अपने समय के कई प्राकृत काव्यों से चुनकर लगभग ७०० गाथाएँ इस ग्रन्थ में संकलित की हैं। इसे 'गाथाकोश' के नाम से भी जाना जाता है। गाथासप्तशती में प्रेम, सौन्दर्य, प्रकृति-चित्रण, ग्रामीण जीवन, सज्जन - दुर्जन वर्णन आदि अनेक विषयों की गाथाएँ हैं । गाथासप्तशती का काव्य-प्रेमियों के बीच बहुत आदर रहा है।
पाठ २७ : गाहामाहुरी
इस ग्रन्थ में कहा गया है कि दुष्ट व्यक्ति की मंत्री पानी में खींची गयी लकीर की तरह अस्थिर है । सज्जन व्यक्ति का स्वाभिमान आपत्ति में भी ऊँचा रहता है । सौन्दर्य वह है, जहाँ गुण हों । ज्ञान वह है, जो कर्त्तव्ययुक्त हो । इन्हीं विषयों से सम्बन्धित कुछ गाथाएँ प्रस्तुत पाठ में संकलित हैं ।
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ते विरला सप्पुरिसा जाणं सिणेहो अहिष्णमुह राम्रो । अणुदिग्रहवड्ढमाणो रिणं व पुत्तेसु संकमइ ॥१॥
वसइ जहिं चेत्र खलो पोसिज्जन्तो सिरोहदाणे हि । त चेत्र आल दी व्व इरेण मइलेइ ||२|| होती व रिगष्फलच्चित्र धरणरिद्धी होइ किविरणपुरिसस्स । गिह्माग्रवसंतत्तस्स गिअअछाहि व्व पहिस्स ॥३॥
कीरन्ति व्वित्र गासइ उम्रए रेहव्व खलाणे मेत्ती । सा उण सुरणम्मि कथा अरणहा पाहाणरेहव्व ||४||
सुरण कुप्पs विश्र ग्रह कुप्पइ विप्पिनं ण चिन्तेइ । ग्रह चिन्तेइ रग जम्पर ग्रह जम्पइ लज्जित्रो होइ ||५||
सो प्रत्थो जो हत्थे तं मित्तं जं णिरन्तणं वसणे । तं रूअं जत्थ गुणा तं विष्णाणं जहिं धम्मो ॥ ६ ॥
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प्राकृत काव्य-मंजरी
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