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खण्ड - ४, गाथा- १
विकल्पप्रत्यक्षत्वस्थापनया बौद्धमतप्रतिक्षेपः
अत्र नैयायिकाः प्रतिविदधति
किमिदं विकल्पत्वम् ? किं शब्दसंसर्गयोग्यवस्तुप्रतिभासित्वम् B आहोस्विदविद्यमानार्थग्राहित्वम् किं विशेषणविशिष्टार्थावभासित्वम् उताकारान्तरानुषक्तवस्त्ववभासकत्वम् ? A तत्र यद्याद्यः पक्षः तदा वक्तव्यम् किमिदं शब्दसंसर्गयोग्यार्थप्रतिभासित्वं विकल्पत्वं पारिभाषिकम् उत वास्तवम् ? यदि पारिभाषिकम् तदा न युक्तम् परिभाषाया अत्रानवतारात् । अथ वास्तवम् तदपि 5 न, प्रमाणाभावात्। भवतु वा तस्य तद्रूपत्वम् तथापि कथमनध्यक्षत्वम् ? अथार्थसामर्थ्याद्भूतत्वात् तस्येत्युक्तम् विकल्पानां च तदसम्भवाद् नाध्यक्षता ननु नीलादिज्ञानवत् शब्दार्थप्रतिभासित्वेऽपि कथं नार्थप्रभवत्वं तेषां ? 'स्वलक्षणातिरिक्तशब्दार्थस्याभावाद् न तत्प्रभवत्वं तेषाम्' इति चेत् ? नन्वेवमसदर्थग्राहित्वं कल्पनात्वं प्रसक्तम् तच्च सामान्यादेः सत्यप्रतिपादनात् निरस्तम् जातिविशिष्टार्थस्य शब्दार्थत्वेन प्रतिपादनात्, [ विकल्पज्ञान प्रत्यक्ष एवं प्रमाणभूत
नैयायिक ]
बौद्ध विद्वानों ने विकल्प को अप्रमाण घोषित किया उस के प्रतिकार में अब नैयायिक पंडित
कहते हैं
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विकल्प का कौन सा अर्थ आप को अभिप्रेत है ? A जो शब्दसम्बन्ध योग्य वस्तु का प्रतिभासक हो, या B अविद्यमान अर्थ का ग्राहक हो, या C विशेषणसंयुक्त अर्थ का अवभासक हो, या D अन्य आकार से आश्लिष्ट वस्तु का प्रकाशक हो ?
आद्य पक्ष के लिये दो प्रश्न हैं ? शब्दसम्बन्धयोग्य अर्थ का प्रतिभासकत्व पारिभाषिक है या वास्तविक ? पारिभाषिक यानी परिभाषाकार की निरंकुश बुद्धि से कल्पित ऐसा शब्दसंबन्धयोग्यवस्तुप्रतिभासकत्व यहाँ तात्त्विक चर्चा में निरुपयोगी होने से अप्रस्तुत है । निरंकुश बुद्धिकल्पित अर्थ सत्य न होने से उस की चर्चा निरर्थक है । यदि वह वास्तविक है तो विकल्प में तथाविधता का स्वीकार हम नहीं करेंगे क्योंकि उस को सिद्ध करनेवाला आप के मत में कोई प्रमाण नहीं है । कैसे भी अगर 20 विकल्प को शब्दसम्बन्धयोग्यवस्तु प्रकाशक मान ले तो इतने मात्र से उस के प्रत्यक्षत्व का अपलाप क्यों ?
होता है (जो कि B दूसरे विकल्परूप है) कि हमने शब्दार्थरूप से स्वीकृत सामान्य कहा है कि सामान्य (जाति) वास्तविक है
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बौद्ध :- इस लिये कि प्रत्यक्ष तो अर्थ के बल पर जन्म लेता है, विकल्पों का जन्म अर्थबलप्रेरित नहीं होता अतः वे प्रत्यक्ष नहीं होते ।'
नैयायिक :- नीलादिज्ञान जो नीलादिअर्थप्रकाशक होते वे यदि अर्थबलप्रेरित हैं तो शब्दार्थप्रतिभासक 25 विकल्प भी उस की तरह अर्थबलप्रेरित क्यों न माना जाय ?
बौद्ध :- 'स्वलक्षण' ही सत्य अर्थ है, शब्दार्थ (सामान्य) यानी स्वलक्षण भिन्न कोई अर्थ अस्तित्व ही नहीं रखता, इसी लिये उन के बल से प्रेरित विकल्प सत्यार्थबलप्रेरित नहीं होते ।
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नैयायिक :- आखिर तो प्रथम विकल्प का मतलब यही हुआ कि वह असत्यअर्थ का ग्राहक इस अर्थ का तो पहले ही निरसन हो चुका है जब 30 सत्यत्व का निरुपण कर दिया है। जब हमने स्पष्ट और जातिविशिष्ट व्यक्ति ही शब्द का
वाच्यार्थ होता है
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