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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ च कुतः ‘स एव०' इत्येका प्रत्यभिज्ञा ? परस्परव्यतिरेके च परोक्षाऽपरोक्षप्रतिभासयोर्भेद एवेति कथमेका प्रत्यभिज्ञा ? नाप्यवसीयमानस्याऽभेदः, अवसायभेदे तदवसीयमानस्यापि भेदात्। न च ‘स एवायम्' इति व्यवहारैकत्वादेकत्वम्, यतो व्यवहारो Aज्ञानम् Bअभिधानम् प्रवृत्तिर्वा ? तत्र यदि ज्ञानम् तत्राप्यविकल्पम् स्मृतिः कल्पना वा ? यदि निर्विकल्पकम् तत् पूर्वापरकालभावि भिन्नमेव 5 - एककालमपि पूर्वापरार्थग्राहि प्रतिभासभेदाद् भिन्नम्। अथ bस्मृतिः, सापि दर्शनाद् भिन्नेव कथं तदर्थस्यैकत्वं साधयति ? न च पूर्वदर्शनविषयवृत्तिः स्मृतिः, तद्विषयत्वस्य तत्राऽसिद्धेः। तथाहि- न तावद् दर्शनात् स्मृतेः तद्विषयत्वं सिध्यति दर्शनकाले स्मृतेरभावात्, तदभावे च न तदर्थवेदनं ततः सिध्यति। नापि स्मृतेरेकार्थता वृत्तिः तत्काले दर्शनस्याभावात्, तद्भावे वा स्मृतेरयोगात्। न हि दर्शना वस्थायां स्मृतिरुदयवती उपयोगवती वा, दर्शनादेवार्थप्रतिपत्तेः। ततो दर्शनकालपरिहारेण प्रवर्त्तमाना 10 स्मृतिर्न दर्शनार्थविषयतामात्मनोऽधिगन्तुं समर्था। अस्पष्टप्रतिभासा च स्मृतिः कथं स्पष्टप्रतिभास से अथवा 'यह' इस ढंग से, किसी एक रूप से ही अवबोध होता ‘वही यह' ऐसे द्विविधरूप से नहीं। फिर वही है यह' ऐसी एकज्ञानात्मक प्रत्यभिज्ञा को अवकाश कहाँ है ? अन्योन्यानुविद्धरूप से प्रतिभास को न मान कर परस्पर पृथग् रूप से ही मानेंगे तब तो स्पष्टास्पष्ट - प्रत्यक्ष/परोक्ष प्रतिभासों का भेद अनायास सिद्ध हो गया फिर प्रत्यभिज्ञा एक अखंड कैसे ? Bअध्यवसायकर्मों का 15 अभेद मानेंगे तो वह भी गलत है क्योंकि जब उपरोक्त ढंग से अध्यवसायों का भेद सिद्ध हुआ तो उन के कर्मो का भेद ही प्रसिद्ध होगा। [ व्यवहार एकत्वबल से प्रत्यभिज्ञा एकत्वसिद्धि अशक्य ] आशंका :- एकत्वाध्यवसाय को जाने दो व्यवहार-एकत्व के बल से हम 'वही है यह' इस व्यवहार से एकत्व की सिद्धि करेंगे। 20 उत्तर :- नहीं। व्यवहार क्या है ? Aज्ञान है ? Bअभिधान है ? या प्रवृत्तिरूप है ? Aप्रथम विकल्प :- ज्ञान कौनसा ? निर्विकल्प ? bस्मृति ? या कल्पनारूप ? यदि निर्विकल्प ज्ञान लेंगे तो पूर्वापरकालभावि निर्विकल्प तो पृथग् ही होता है। समानकाल भावि निर्विकल्प ज्ञान भी पूर्वापर अर्थग्राहक होगा तो प्रतिभासभेद से पृथक्-पृथक् सिद्ध होगा। a-2यदि स्मृतिरूप ज्ञान लिया जाय तो, यदि दर्शन से वह भिन्न है तो दर्शनविषय से स्मृतिविषय का एकत्व स्मृति के द्वारा कैसे सिद्ध 25 होगा ? स्मृति पूर्वक्षण के दर्शन के विषय को छूती नहीं है, क्योंकि स्मृति में दर्शनविषयविषयकत्व सिद्ध नहीं है। देखिये- दर्शन से तो यह सिद्ध नहीं हो सकता कि स्मृति दर्शनविषयविषयक है, क्योंकि दर्शनक्षण में स्मृति (धर्मी) मौजूद नहीं थी, उस के विरह में स्मृति रूप धर्मी में दर्शनविषयविषयकत्व धर्म, दर्शन से सिद्ध नहीं हो सकता। स्मृति दर्शनविषय के साथ अपने विषय की एकार्थता के ग्रहण में तत्पर नहीं हो सकती क्योंकि स्मृति क्षणकाल में दर्शन ही मौजूद नहीं, यदि उस क्षण में दर्शन 30 है तो स्मृति नहीं रहेगी। विदित है कि दर्शनावस्थाकाल में न तो स्मृति का उदय होता है, न तो उस का उपयोग, क्योंकि अर्थावबोध तो दर्शन से ही चरितार्थ है। निष्कर्ष :- दर्शन को छोडकर भिन्नकाल में रहनेवाली स्मृति दर्शनग्राह्यअर्थविषयता का स्व में प्रकाश करने के लिये सक्षम नहीं है। यह भी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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