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________________ विषय निर्देश पृष्ठ विषय पृष्ठ विषय ५९ .....प्रत्यभिज्ञा और स्मृति में अभेद की सिद्धि | ७६ .....व्यवहार एकत्वबल से प्रत्यभिज्ञा एकत्वसिद्धि ६० .....इदानींतन अस्तित्व का पूर्वबुद्धि से अग्रहण अशक्य ___ कैसे ? ७७ .....एकत्वग्रहण और संवाद से प्रत्यभिज्ञा प्रमाण ६१ .....पूर्वोत्तरभाव के एकत्व का ग्रहण कैसे ? - आशंका ६३ .....पूर्वदृष्टपदार्थ का पुनः दर्शन अशक्य ७८ .....पूर्वकालयोगिता- एकत्व-प्रत्यभिज्ञा बेबुनियाद ६३ .....पूर्वदृष्ट रूप का द्वितीयविज्ञान से ग्रहण | ७९ .....नाश की सहेतुकता का निरसन अशक्य ८० .....आत्मा के अव्यक्तविकाररूप बुद्धिध्वंस अमान्य ६४ .....अभिन्न विषय के अवभास का निरूपण असंगत ८१ .....प्रध्वंसाभाव कृतक या अकृतक - विकल्पनिरसन ६५ .....वर्त्तमानदर्शनवृत्ति-अप्रच्युति का अन्योन्याश्रय ८२ .....अभाव में भावत्व का अनिष्टापादन ६५ .....पूर्वदृष्ट रूप के लिये दो प्रश्न ८३ .....अभाव और भवति का परस्परविरोध ६६ .....निर्विकल्प में पूर्वापर भावावभास के प्रति | ८३ .....पर्यदास नकार से अर्थान्तरविधान का विमर्श विकल्पद्वयी ८४ .....अभाव (ध्वंस) काल में काष्ठानुपलब्धि की ६६ .....प्रतिभास्यों के अभेद की सिद्धि का असम्भव संगति कैसे ? ६७.....अखंडरूप से पूर्वापर का प्रतिभास अशक्य | ८४ .....सहेतक विनाश में वैविध्य की आपत्ति ६७ .....पूर्वदृष्ट के दर्शन का पूर्वकथन अयुक्त | ८५ .....नाश के नाश की अथवा बुद्धि आदि ६८ .....नील के अध्यवसाय से नीलग्रहण का प्रश्न | अविनाश की आपत्ति - अन्यमत ८५ .....बुद्धि को स्वसंविदित न मानने पर ६९ .....भेदनिश्चय अनुमानमूलक, अन्यत्र सुलभ अविनाशप्रसंग ७० .....एकत्वग्राही निर्विकल्प का निरसन ८६ .....बुद्धिनाश की तरह विनाश के विनाश की ७१ .....स्मृतिसहकृत दर्शन से एकत्व का ग्रहण आपत्ति असम्भव ८६ .....लोक में भी विनाश की तुच्छता की मान्यता ७१ .....एकाधिकरणतारूप अभेद की परिभाषा का ८७ .....कृतकविनाश की नित्यता युक्तियुक्त नहीं प्रतिकार ८७ .....अनुपलम्भ मात्र से वस्तु अभाव की सिद्धि ७२ .....क्या आत्मा एकत्वबोध कर सकता है ? अशक्य ७२ .....अनेकदर्शनानुगत एक शुद्धात्मा की कल्पना | ८८ .....वस्त्र के रंग की अवश्यंभाविता अनिश्चित असंगत ७३ .....अभेदप्रत्यभिज्ञा से एकत्व सिद्धि की आशंका ८९ .....नश्वर/अनश्वर स्वभाव विकल्पों में अनुपपत्तियाँ | ९० .....अन्तकाल में स्वभाव तदवस्थ होने से नाश का उत्तर अयोग ७४ .....लिङ्गजन्य ‘सुरभि चन्दन' प्रतीति की तुल्यता ९० .....मोगरादि की निवृत्ति प्रति सापेक्षता प्रश्नगत प्रत्यभिज्ञा में ७५ .....एकत्वाध्यवसाय बल से प्रत्यभिज्ञा - ९१ .....नाश की तरह उत्पत्ति के विकल्पों का एकत्वसिद्धि दुर्गम आपादन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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